यूक्रेन संकट: भारत के रुख़ पर बोले बाइडन, मोदी सरकार पर बढ़ा दबाव
यूक्रेन पर रूस के हमले को लेकर भारत पर दबाव बढ़ता जा रहा है. पूरे मामले में भारत का रुख़ अब तक रूस के ख़िलाफ़ नहीं रहा है.
भारत ने अपने आधिकारिक बयानों में न तो रूस की निंदा की है और न ही यूक्रेन की संप्रभुता को रेखांकित किया है. हालाँकि यह भारत का कोई नया रुख़ नहीं है. दूसरी सरकारों में भी रूस को लेकर भारत की यही स्थिति रही है.
लेकिन इस बार हालात बिल्कुल अलग हैं और भारत के लिए गुटनिरपेक्ष रहना आसान नहीं है. गुरुवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से पूछा गया कि अगर भारत और अमेरिका बड़े रक्षा साझीदार हैं तो दोनों देश क्या रूस के मामले में एक साथ हैं?
इस सवाल के जवाब में जो बाइडन ने कहा, अमेरिका आज भारत से बात करेगा. अभी तक पूरी तरह से इसका कोई समाधान नहीं निकला है.
संयुक्त राष्ट्र में वोटिंग हुई तो
यूक्रेन पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में संभावित वोटिंग से पहले बाइडन से भारत को लेकर यह सवाल पूछा गया था.
राष्ट्रपति बाइडन रूस पर कड़े प्रतिबंधों की घोषणा कर रहे थे, उसी दौरान उनसे यह सवाल पूछा गया था. यूक्रेन को लेकर भारत का रुख़ अमेरिका के लिए असहज करने वाला बताया जा रहा है. ऐसा तब है, जब अमेरिका चीन की बढ़ती शक्ति को रोकने में भारत को अहम देश मानता है.
हाल के वर्षों में भारत की क़रीबी अमेरिका से बढ़ी है, लेकिन रूस से भी भारत के ऐतिहासिक संबंध रहे हैं. रूस भारत के लिए अब भी सबसे बड़ा रक्षा उपकरणों का आपूर्तिकर्ता है.
सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों में भारत भी एक अस्थायी सदस्य है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बाइडन प्रशासन के एक सीनियर अधिकारी ने कहा कि शुक्रवार को यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस की निंदा और बिना शर्त सैनिकों को वापस बुलाने के लिए एक प्रस्ताव पर वोटिंग हो सकती है.
कहा जा रहा है कि रूस वीटो करेगा. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाँच स्थायी सदस्यों में रूस भी है. स्थायी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार है. यानी रूस अपने ख़िलाफ़ कोई प्रस्ताव पास होने पर वीटो से ज़रिए रोक सकता है. लेकिन कहा जा रहा है कि रूस भले वीटो कर ले, लेकिन अमेरिका उसे सुरक्षा परिषद में अलग-थलग करना चाहेगा. अमेरिका की कोशिश है कि कम से कम 13 वोट उसके पक्ष में रहें. चीन के बारे में कहा जा रहा है कि वह वोटिंग से बाहर रह सकता है.
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