शाश्वत प्रेम, प्रेरणा और आदिवासी विमर्श का अद्भुत ग्रन्थ है श्रमवीर

पुस्तक – श्रमवीर


पुस्तक समीक्षक – चन्द्रशेखर प्रजापति
रचनाकार – देवेन्द्र कश्यप ‘निडर’

प्रायः प्रबंध काव्य लेखन की संस्कृति में राजा, राजकुमार या रानी को नायक बनाकर लिखे जाते रहे हैं। मगर लोकतांत्रिक युग के रचनाकार अब इस परम्परा से आगे बढ़ रहे हैं। इसी कोटि में देवेन्द्र कश्यप निडर एक ऐसे चर्चित साहित्यकार हैं जिन्होंने श्रमिक जगत से एक नायक को साहित्य के पटल पर स्थापित कर शानदार प्रबंध काव्य का सृजन किया है और जिसका नाम रखा श्रमवीर। यह श्रमवीर कोई और नहीं अपितु संघर्ष की हिमालय जैसी कहानी रचने वाले श्रमवीर दशरथ माॅंझी की है। यह ग्रन्थ शाश्वत प्रेम, लोकहित व आदिवासी विमर्श को खड़ा करने में समर्थ है साथ ही यह धर्म, नीति, दर्शन का दुर्लभ ग्रन्थ है। महाकाव्य और खण्ड काव्य प्रबंध काव्य के भेद होते हैं। काव्य नियमों के अनुसार वस्तुत: खंडकाव्य में किसी भी व्यक्ति के जीवन से जुड़ी किसी घटना विशेष का चित्रण रचनाकार के द्वारा किया जाता है लेकिन लगता है देवेन्द्र कश्यप निडर की कृति ‘श्रमवीर’ में दशरथ माॅंझी के सम्पूर्ण जीवन को केंद्रित करने का काम करती है इसलिए यह एक शानदार प्रबंध काव्य है। श्रमवीर में न केवल भारत की लोक प्रसिद्ध कथाओं से दशरथ माॅंझी के शौर्य पराक्रम का चित्रण किया गया है अपितु विश्व‌ विश्रुत पौरुष प्रधान कथाओं का उल्लेख कर दशरथ माॅंझी की श्रम वीरता का तुलनात्मक सजीव वर्णन किया गया है। श्रमवीर में पर्वत पुरुष दशरथ माॅंझी का वीरत्व झलकता है। इस अदभुत कृति में रचनाकार ने जीवन के वैविध्य पक्षों का सलीके से उद्घाटित किया है। इस प्रबंध काव्य में जिस तरह से रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने प्रभु श्रीराम के जीवन के सभी पक्षों को समेटते हुए उसको सात सर्गो में विभक्त करते है, ठीक उसी तरह निडर जी भी दशरथ माॅंझी के जीवन के विविध पक्षों को संकलित करते हुए सात सर्गो में ही अपने इस ग्रंथ को सामने लाने का काम करते है, पांचवें सर्ग में जिस तरीके से रामचरित मानस में राम और समुद्र का संवाद होता दिखाया है कमोबेस इसी तरह का देवेन्द्र‌ ने दशरथ माॅंझी और पर्वत के मध्य ओजस्वी संवाद से शब्द बिम्ब के अनोखे दर्शन होते हैं। जिस तरह मानस का छठा खंड संघर्ष की दास्तां है उसी तरह निडर जी भी छठे सर्ग मे संघर्ष को ही रेखांकित करते है यही कारण है कि ये सर्ग अन्य की अपेक्षा अधिक विस्तार लिए है ,वही अंतिम और सप्तम सर्ग उत्तर काण्ड की भाँति नीति परक है जो समाज को दिशा देने और मार्गदर्शक का कार्य करता है। ये सिर्फ संघर्ष और संकल्प की ही कथा मात्र नही है बल्कि उसमे अंतर्निहित प्रेम को भी स्पष्ट करती है ,बचपन मे सीरी फरहाद की कहानी सुनी थी ,वो संघर्ष प्रेम को पाने के लिए था ,और स्वभावतः प्रेम की प्राप्ति के लिए इंसान हर तरह की चुनौती को स्वीकार कर लेता है लेकिन उसकी प्राप्ति के उपरांत उसको सहेजना उसकी संरक्षण करना उतना ही दुष्कर होता है, और दशरथ माॅंझी का ये संकल्प और संघर्ष इसलिए विशिष्ट है कि वो प्रेम को पाने के लिए नही प्रेम की हिफाजत का द्योतक है, जब निडर जी की कृति को पढ़ता हूॅं तो वो सारी घटनायें चलचित्र की तरह सजीव हो उठती है, इस कृति का प्रथम सर्ग “गहलोर (गया ) की उस भूमि का स्तवन करता है जहाॅं माउंटेन मैन ने जन्म लिया, उस भूमि के भौगोलिक और सामाजिक दोनों परिदृश्य को निडर जी बखूबी सामने लाने का काम करते है वही इसके ऐतिहासिक और अध्यात्मिक महत्व को भी वो रेखांकित करते है
” गहलोर प्रकृति की गोद बसा
मन को प्रमुदित निशिदिन करता
चहुॅंओर हार पर्वत का है
पावन सुवास पल पल भरता “
दशरथ माॅंझी की अर्धांगिनी फगुनी के व्यक्तित्व को निडर जी दूसरे सर्ग मे बड़ी कुशलता के साथ चित्रित करन का काम करते है ,सर्ग के आरम्भ मे ही वे लिख देते है–
“छवि छटा देख निज फगुनी की
दशरथ का मन सुख पाता था
खिल जाता था हिय का गुलाब
खुशियों से मुख मुस्काता था “
प्रेयसी से पत्नी बनने की फगुनी की गाथा को वो बड़ी कुशलता के साथ सामने लाते है, तभी तो परिवार का प्रतिकार होने पर वो दशरथ माॅंझी के मुख से कहलाते है
“क्या कहा आप निज बेटी को
दूजे वर को तुम दे दोगे?
क्या नहीं आप फिर घोर पाप
अपने सिर पर ही ले लोगे?
अपनी रमणी को जीते जी
मैं जुदा नहीं कर सकता हु
मेरे दिल की यह धड़कन है
मै दूर नहीं रह सकता हूॅं “
निडर जी दशरथ माॅंझी और फगुनी के गृह जीवन को चित्रित करते हुए समाज की बेटियों को लेकर संदेश देने का भी काम करते है
“जब तलक बेटिया बिलखेंगी
सभ्यता देश की रोयेगी
कंटक जीवन बन जायेगा
नरता धूमिल हो जाएगी “
समाज में नारियों के प्रति अनुचित भाव रखने वालों को निडर जी क्या खूब संदेश अपनी भाषा मे देते है
‘जब तक मनचले मनुज होंगे
नन्ही कलिया पीड़ित होंगी
तरु कदाचार लहराएगा
सज्जनता भी शोणित होगी “
चौथे सर्ग के साथ आरम्भ होती है दशरथ माॅंझी के संघर्ष और संकल्प की कथा ,और चिंतन के इसी बिंदु पर विचार करते हुए वो चिंतन को एक नया धरातल देते है
“चिंतन देता संघर्ष बोध
चिंतन धीरज भी देता है
चिंतन प्रशस्त पथ को करता
चिंतन आलस हर लेता है “
इस कृति का सबसे सशक्त और महत्वपूर्ण इसका पंचम “शैल सर्ग ” है, जो दशरथ बाबा के संघर्ष के एक एक बिंदु को खूबसूरती के साथ चित्रित करने का काम करता है
“जब दशरथ की ललकार सुनी
तब गिरि की बाहें फड़क उठी
कहता प्रताप अनुपम मेरा
मेरे सम्मुख मत बनो हठी “
निडर जी का अध्ययन कितना विशद है ये इस बात से इंगित होता है कि वो जानते है कि माॅंझी कबीर पंथी है तभी तो लिखते है
“पर्वत पर जब दशरथ पहुॅंचे
साहेब बंदगी शैल किया
फिर हाल चाल पूछा मन से
सॅंग अपनी मंशा बता दिया “
व्यक्ति के संकल्प के सामने बड़े बड़े शिखर और अहम भी किस तरह से पराजित होते है उसका यथार्थ इस कृति के छठे “पर्वत पराजय ” सर्ग मे मिलता है, माॅंझी का पर्वत को काटकर रास्ता बनाना कोई मामूली घटना नहीं इसने इतिहास सृजन का कार्य किया है, जिसको आने वाली पीढ़िया बरसों बरस याद रखेंगी।
“जब पूर्ण पराजित गिरि होगा
सुख चैन तभी मैं पाऊॅंगा
निशि द्यौस यही दशरथ सोचे
प्रस्तर इतिहास बनाऊॅंगा “
और ये घटना हमेशा हमेशा के लिए इतिहास के पृष्ठ में स्वर्ण अक्षरों से अंकित हो गई
“दशरथ जी के साहस सम्मुख
गिरि का गुरूर था भंग हुआ
प्रस्तर टूटा राहें निकली
सम्पूर्ण विश्व भी दंग हुआ “
कवि धर्म समाज को दिशा देना और उसे प्रेरित करना भी है, निडर जी इस जिम्मेदारी का पूरी तरह से निर्वहन करते है ,
“दशरथ बाबा सबसे कहते
संघर्ष सदा करते जाये
सीमा विस्तार कराने को
हारना नही मर्यादाए “
“बच्चों से बाबा कहते थे
पढ़ने लिखने का कर्म करो
खाली मत बैठो किंचित भी
आलस करने में शर्म करो “
उनका संदेश है
“श्रम नवाचार जो करता है
बन जाता जग का भव्य भाल
जगती भी नमन उसे करती
चलता जग मे जो नई चाल “
निडर की इस कृति की सबसे बड़ी विशेषता इसकी भाषा अत्यंत सरल और सहज है जो पढ़ते पढ़ते आप को स्वय कंठस्थ हो जाती है।
देवेंद्र सामाजिक सरोकारो के प्रति जागरूक और विसंगतियों पर निरंतर प्रहार करते रहते है, उनकी ये कृति समाज के वंचित वर्ग मे छिपे उन नायकों को सामने लाने की अभिनंदनीय पहल है जिस पर चर्चा कम होती है ,निडर ने इस कृति का सृजन कर पर्वत पुरुष दशरथ माॅंझी जी को सच्ची श्रद्धांजलि दी है। श्रमवीर कथ्य, शिल्प, भाव, रस, छंद सहित काव्य के सभी गुणों से सुसज्जित है। यह प्रबंध साहित्य एक अकादमिक ग्रन्थ है। जिसका प्रकाशन माया प्रकाशन कानपुर से हुआ है। इस हार्ड बाउण्ड पुस्तक का मूल्य मात्र तीन सौ पचहत्तर रुपये है। यह ग्रन्थ श्रमिक, आदिवासी, शाश्वत प्रेम और लोक हित का विमर्श खड़ा करने में समर्थ है इसलिए यह प्रबंध साहित्य सराहनीय, शोधपरक और संग्रहणीय है।
( पुस्तक समीक्षक शोधार्थी और स्तम्भकार )

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