जिले भर में मनाया गया कुष्ठ दिवस, स्पर्श कुष्ठ जागरूकता अभियान शुरू
लखनऊ में सम्मानित किये गये जिला कुष्ठ अधिकारी डॉ गणेश यादव
गोरखपुर, 30 जनवरी 2024
कुष्ठ का उपचार ले चुके या उपचाराधीन कुष्ठ रोगी से समाज में संक्रमण का कोई खतरा नहीं है। ऐसे लोगों के साथ रहा जा सकता है और उनके साथ विवाह भी किया जा सकता है । समाज को खतरा उन रोगियों से है जो लक्षण के बावजूद भय, भ्रांति, कलंक और भेदभाव के कारण कुष्ठ की जांच नहीं करा पाते हैं । इस संदेश के साथ साथ ‘‘भेदभाव का अंत करें, सम्मान को गले लगाएं’’, की थीम को साकार करने का पूरे जिले में मंगलवार को संकल्प लिया गया । महात्मा गांधी की पुण्यतिथि को कुष्ठ दिवस के रूप में मनाया गया । साथ ही साथ 14 दिनों तक चलने वाला स्पर्श कुष्ठ जागरूकता अभियान भी शुरू हो गया ।
इस खास दिवस पर कुष्ठ उन्मूलन में बेहतर योगदान के लिए जिला कुष्ठ अधिकारी डॉ गणेश यादव को लखनऊ में हुए एक समारोह के दौरान प्रमुख सचिव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पार्थ सारथी सेन शर्मा और राज्य कुष्ठ अधिकारी डॉ जया देहलवी द्वारा सम्मानित भी किया गया । मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आशुतोष कुमार दूबे के दिशा निर्देशन में जिले का मुख्य आयोजन जिला कुष्ठ अधिकारी कार्यालय पर किया गया जहां कुष्ठ निवारण की शपथ दिलाई गयी । इस संबंध में जिलाधिकारी का संदेश भी सभी लोगों को पढ़ कर सुनाया गया । जिले की सभी सीएचसी, पीएचसी और ब्लॉक पर अधिकारियों और कर्मचारियों ने कुष्ठ मुक्त जनपद के लिए जनजागरूकता की शपथ ली ।
मुख्य आयोजन के दौरान जिला कुष्ठ रोग परामर्शदाता डॉ भोला गुप्ता ने कहा कि कुष्ठ रोग से जुड़े कलंक और भेदभाव की समस्या को दूर करने के लिए 30 जनवरी 2017 से स्पर्श कुष्ठ जागरूकता अभियान की पूरे देश में शुरूआत की गयी थी । इसके तहत 14 दिनों तक स्कूल, कॉलेज, ग्राम सभा, स्वास्थ्य और पोषण से जुड़े सत्र स्थलों और विभिन्न सामुदायिक प्लेटफार्म के जरिये लोगों को बीमारी के लक्षणों और उपचार के बारे में जानकारी दी जाएगी । उन्हें बताया जाएगा कि कुष्ठ के लक्षण दिखने पर आशा, एएनएम या बहुद्देशीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता की मदद से स्वास्थ्य केंद्र पर जांच कराएं और सम्पूर्ण इलाज पाएं ।
डॉ गुप्ता ने बताया कि पासी बेसिलाई (पीबी) कुष्ठ रोग का इलाज छह माह में और मल्टी बेसिलाई (एमबी) कुष्ठ रोग का इलाज साल भर में पूरा हो जाता है । समय से जांच और इलाज न करवाने पर यह बीमारी दिव्यांगता और विकृति का रूप ले सकती है । कुष्ठ अधिक संक्रामक बीमारी नहीं है और यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक आसानी से नहीं पहुंचता है। एक बार उपचार शुरू होने के बाद संक्रमण की आशंका शून्य हो जाती है । इसका उपचार सभी ब्लॉक स्तरीय अस्पतालों पर उपलब्ध है । कुष्ठ रोगी को परिवार और समुदाय से अलग नहीं करना है। वे सामाजिक कार्यक्रमों में भी हिस्सा ले सकते हैं ।
इस मौके पर नान मेडिकल असिस्टेंट (एनएमए) महेंद्र चौहान, फिजियोथेरेपिस्ट आसिफ खां, अवध नारायण और खदीजा परवीन समेत फाइलेरिया नियंत्रण इकाई के अधिकारियों और कर्मचारियों ने भी महात्मा गांधी की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किया और कुष्ठ निवारण की शपथ ली ।
जी रहे हैं सामान्य जीवन
चरगांवा ब्लॉक के 23 वर्षीय कुष्ठ चैम्पियन जयप्रकाश ने बताया कि वर्ष 2005 में उनकी बीमारी पहचान में आई। उनकी अंगुलियां सुन्न थीं और चेहरे पर दाग धब्बा था । आशा कार्यकर्ता की मदद से चरगांवा पीएचसी पर उनका इलाज हुआ । एक साल दवा खाने के बाद वह पूरी तरह से ठीक हो गये । दाहिने हाथ की एक अंगुली टेढ़ी हो गयी थी। सर्जरी के बाद वह भी ठीक हो गयी । चरगांवा के एनएमए विनय श्रीवास्तव की मदद से वह कुष्ठ चैम्पियन बन दूसरों को इस बीमारी के प्रति जागरूक कर रहे हैं और सामान्य जीवन जी रहे हैं ।
सुन्न दाग धब्बा हो तो जांच कराएं
अगर शरीर पर चमड़ी के रंग से हल्का कोई भी सुन्न दाग धब्बा हो तो कुष्ठ की जांच अवश्य करानी चाहिए । हल्के रंग के व्यक्ति की त्वचा में गहरे और लाल रंग के भी धब्बे हो सकते हैं। हाथ या पैरों की अस्थिरता या झुनझुनी, हाथ पैर व पलकों में कमजोरी, नसों में दर्द, चेहरे या कान में सूजन अथवा घाव और हाथ या पैरों में दर्द रहित घाव भी इसके लक्षण हैं । तुरंत जांच और इलाज से मरीज ठीक हो जाता है और सामान्य जीवन जी सकता है।
डॉ गणेश यादव, जिला कुष्ठ अधिकारी