गोरखपुर,अब सुनने के साथ बोल भी लेते हैं अलकमा और अनाया

पिता अली असगर समेत बच्चों से मुलाकात कर सीएमओ ने जाना हाल

जिले में आठ बच्चों की योजना के तहत हो चुकी है काक्लियर इम्प्लांट सर्जरी

गोरखपुर, 28 दिसम्बर 2022

अगर सही समय से बच्चे के न बोलने व न सुनने की समस्या का पता चल जाए तो राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) के तहत काक्लियर इम्प्लांट सर्जरी करा कर बच्चों के जीवन की दशा और दिशा बदली जा सकती है । अलकमा और अनाया इस कार्यक्रम के प्रयासों से अब न केवल सुनते हैं बल्कि बोल भी लेते हैं । बच्चों के पिता अली असगर से मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आशुतोष कुमार दूबे ने अपने कार्यालय में मुलाकात कर फॉलो अप किया ।

पिता ने पूरे स्वास्थ्य महकमे को धन्यवाद दिया और कहा कि दो दो बच्चों की इतनी महंगी सर्जरी योजना के बिना कराना संभव नहीं था । सीएमओ का कहना है कि जिले में इस तरह के कुल आठ बच्चों को सर्जरी की सुविधा मिल चुकी है।

पिपरौली ब्लॉक के नौसढ़ के निवासी बच्चों के पिता अली असगर (42) और मां जेबा (38) बताती हैं कि बड़ा बेटा अलकमा जब आठ माह का होने के बावजूद बुलाने पर कोई रिस्पांस नहीं देता था तो चिंता बढ़ी । कई चिकित्सकों को दिखाया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ । बेटे को लेकर एम्स दिल्ली गये जहां इलाज पर 10 से 12 लाख का खर्च बताया गया । इतना वहन करना संभव नहीं था । थक हार कर गोरखपुर लौट आए और यहां अलकमा को हियरिंग एड के साथ स्पीच थैरेपी दिलवाने लगे । इसमें लाखों रुपये खर्च हुए। बड़ा बेटा पांच साल का होने वाला था कि बिटिया अनाया ने भी जन्म लिया। अनाया भी बड़ी हुई तो बेटे वाली ही दिक्कत सामने आई। जीवन निराशा और चिंता से भर गया।

वर्ष 2019 में जिला अस्पताल में काक्लियर इम्प्लांट के लिए बच्चों को चिन्हित करने का कैम्प लगा । आरबीएसके चिकित्सक डॉ आबिद ने उन्हें कैम्प के बारे में जानकारी दी। चिकित्सक को पहले से बच्चों की बीमारी के बारे में पता था और उन्होंने इलाज का भरोसा दिलाया था। डॉ आबिद, डॉ प्रज्ञा, रनध्वज और दीपामाला की टीम उन्हें कैम्प स्थल तक ले आई। वहां जांच के बाद दोनों बच्चों को काक्लियर इम्प्लांट के लिए चुना गया। योजना की डीईआईसी मैनेजर डॉ अर्चना बताती हैं कि अलकमा की उम्र आठ साल की हो चुकी थी, इसलिए विशेष प्रयास करने पर ही इम्प्लांट के लिए उसका चुनाव किया जा सका। काक्लियर इम्प्लांट की सुविधा सिर्फ छह साल तक के बच्चों में सफल होती है । इसलिए सही उम्र में ही बच्चों को इस सेवा से जोड़ना होगा । योजना का लाभ लेने के लिए सीएमओ न्यू बिल्डिंग में उनसे सम्पर्क किया जा सकता है।

मां जेबा बताती हैं कि डीईआईसी मैनेजर के पास आय प्रमाण पत्र, दिव्यांगता प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र व आधार कार्ड की फोटोकॉपी जमा की गयी। सीएमओ कार्यालय से पत्र बना और फिर कानपुर में दिसम्बर 2020 में सर्जरी हुई। सर्जरी के बाद मां ने कानपुर में ही किराये का कमरा ले लिया और वहां बच्चों की स्पीच थेरेपी करवाईं। डेढ़ साल तक वहीं रहीं। नतीजा रहा कि दोनों बच्चे बोलने लगे और सुन भी लेते हैं। वह सामान्य बच्चों के साथ स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं।

समय से पहचान आवश्यक

आरबीएसके चिकित्सक डॉ आबिद बताते हैं कि नोडल अधिकारी डॉ नंद कुमार और अधीक्षक डॉ शिवानंद मिश्रा के कुशल दिशा निर्देशन में इस सेवा का प्रचार प्रसार भी किया जा रहा है । अगर आठ से नौ माह की उम्र में बच्चा बोलने पर कोई रिस्पांस नहीं करता है तो समय रहते आरबीएसके टीम से सम्पर्क किया जाना चाहिए। जरूरमंद तबके के लोगों को इस सर्जरी की सुविधा कानपुर और लखनऊ में दी जाती है। उम्र निकलने पर यह सर्जरी कारगर नहीं होती है।

*4.45 लाख बच्चों की हुई जांच*

कार्यक्रम की डीईआईसी मैनेजर डॉ अर्चना बताती हैं कि 38 मोबाइल टीम ने स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों में करीब 4.45 लाख बच्चों की जांच अप्रैल 2022 से नवम्बर 2022 तक की । इस अवधि में 92 बच्चों की ह्रदय में छेद, क्लब फुट, क्लब पैलेट आदि की सर्जरी करायी गयी । जन्मजात दोषों से युक्त 73 बच्चों का इलाज कराया गया । कार्यक्रम में 44 प्रकार की बीमारियों को चिन्हित कर इलाज करवाने का प्रावधान है जिनमें न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट, काक्लियर इम्प्लांट, फिस्टूला सर्जरी, क्लब फुट, क्लब पैलेट, कुपोषण जैसी बीमारियों का इलाज प्रमुख है । शून्य से 19 वर्ष तक के बच्चों का इलाज कार्यक्रम के तहत होता है।

अभिभावकों की जागरूकता आवश्यक

बच्चों को स्वास्थ्य सुविधा देने के लिए जिले में आरबीएसके की 38 टीम सक्रिय हैं। किसी भी बीमारी का लक्षण दिखने पर जागरूक अभिभावकों को आशा या आंगनबाड़ी के माध्यम से टीम से सम्पर्क करना चाहिए। टीम की मदद से जिला स्तर से मरीज उच्च संस्थानों में भेजे जाते हैं ।

डॉ आशुतोष कुमार दूबे, मुख्य चिकित्सा अधिकारी

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