हरदोई,राजकीय एवं अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में एम डी एम योजना का बच्चों को नहीं मिल रहा लाभ

हरदोई। बी एस ए , डी आई ओ एस , बी ई ओ एवं मिड डे मील को-ऑर्डिनेटर्स की उदासीनता के कारण मध्यान्ह भोजन योजना राजकीय एवं अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों के प्रधानाचार्यों की अवैध कमाई का जरिया बन गई है।
बेसिक शिक्षा परिषद के एक से लेकर आठ तक एवं राजकीय और माध्यमिक स्कूलों के कक्षा 06 से 08 के ब’चों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत पीएम पोषण( मध्याह्न भोजन योजना) के तहत दोपहर को स्कूलों में मिड डे मील दिया जाता है। रविवार व सार्वजनिक अवकाश के अलावा ग्रीष्मकालीन अवकाश छोड़कर भोजन दिया जाता है।

मिड डे मील की परिवर्तन लागत की धनराशि उच्च प्राथमिक(जूनियर) स्तर के प्रति छात्र को 901 रुपये दिए जाएंगे। यह धनराशि छात्रों के अभिभावकों को विद्यालय स्तर पर संचालित मध्याह्न भोजन निधि के अंतर्गत बैंक खाते से निजी बैंक खातों में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर(डीबीटी) के माध्यम से स्थानांतरित किया जाएगा।
सरकार बच्चों को दोपहर का भोजन मुहैया करा रही है। परंतु असलियत तो यह है कि अन्य सरकारी योजनाओं की तरह मिड डे मील (एमडीएम) योजना भी भ्रष्टाचार की शिकार है। प्रधानाचार्यों के भ्रष्टाचार के बाद बच्चों को कैसा भोजन मिलता होगा, यह आसानी से समझा जा सकता है। मिड डे मील योजना से बच्चों की जगह प्रधानाचार्य मालामाल हो रहे हैं। पूरी की पूरी योजना एक बड़े गोलमाल की भेंट चढ़ गई है। इण्टर कालेजों के प्रधानाचार्यों के हाथ भी एमडीएम के गोलमाल में रंगे हुए हैं।

इसके अलावा जिम्मेदार पर्याप्त धनराशि मिलने के बाद भी भ्रष्टाचार करने से नहीं चूक रहे हैं। इस कारण बच्चे घटिया खाना खाने से बीमार पड़ रहे हैं। एमडीएम में भ्रष्टाचार के कारण आईवीआरएस सिस्टम के भी हाथ पांव फूल रहे हैं। एमडीएम के आंकड़ों की बाजीगरी को रोकने के लिए आईवीआरएस (इंटरेक्टिव वॉयस रिस्पांस सिस्टम) की शुरुआत की गई। इस दैनिक अनुश्रवण प्रणाली का मकसद प्रदेश के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों एवं माध्यमिक विद्यालयों में प्रतिदिन एमडीएम ग्रहण करने वाले बच्चों की संख्या की सही जानकारी हासिल करना था।

टेक्नॉलॉजी के आधार पर कंप्यूटर और मोबाइल फोन के इंटरफेस के आधार पर इस प्रणाली से हर कार्य दिवस पर स्कूल के प्रधानाध्यापक, अध्यापक और शिक्षामित्र का मोबाइल नंबर जुड़ा रहता है, जिससे ऑटोमेटिक कॉल इनके नंबर जाती है और एमडीएम ग्रहण करने वाले बच्चों की संख्या पूछी जाती है। इसके उत्तर में मोबाइल से अंक टाइप करके उत्तर देना होता है। खाना न बनने की स्थिति में शून्य दबाकर उत्तर देना होता है। इस सिस्टम से जनपदवार एक रियल टाइम रिपोर्ट बनाई जाती है। लेकिन अब भ्रष्टाचार के चलते व्यवस्था बदहाली का शिकार हो गई है । इसके चलते अब बेसिक शिक्षा विभाग ने पंजीकृत स्टूडेंट्स का आधार नंबर दर्ज करने की व्यवस्था की है।

मध्यान्ह भोजन में आईवीआरएस सिस्टम को बैकअप देने के उद्देश्य से बेसिक एवं माध्यमिक स्कूलों के बच्चों को आधार के जरिए जोड़ने का जिम्मा यूपी डेस्को को दिया गया लेकिन सॉफ्टवेयर की तकनीकी दिक्कतों के कारण अभी इस योजना को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है। सरकार की ओर से सरकारी स्कूल में सभी बच्चों को मध्यान्ह भोजन दिया जाता है ताकि स्कूल में बच्चे रोजाना आयें और उन्हें पर्याप्त पोषण मिलता रहे। इसकी के लिए सरकार ने मिड डे मील योजना की शुरुआत की है। इस योजना के तहत सरकार बच्चों को शिक्षा के साथ ही स्वस्थ और पोषित बनाना चाहती है।बच्चों को मैन्यू के हिसाब से रोजाना खाना दिए जाने का प्रावधान है। इसमें फल व दूध भी शामिल होता है। अधिकांश स्कूलों में फल और दूध नहीं दिया जाता है। तहरी भी घटिया स्तर की बनाई जाती है। खराब घटिया भोजन के कारण प्रायः बच्चे उसे खाने से मना कर देते हैं। कभी-कभी ऐसी स्थिति आती है कि मिड डे मील कालेजों में बनता ही नहीं है। जबकि स्कूल कालेजों को भुगतान सरकार की ओर से निर्धारित दर पर किया जाता है।
भ्रष्ट राजकीय एवं अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों के प्रधानाचार्यों ने एमडीएम को अपनी अवैध कमाई का जरिया बना लिया है।फलस्वरूप पिछले वर्षों की डी बी टी राशि 901 रुपए अभी तक इण्टर कालेजों के प्रधानाचार्यों ने अभिभावकों के खातों में नहीं भेजी है।मध्यान्ह भोजन योजना प्राधिकरण भी किम कर्तव्य विमूढ़ बना हुआ है।

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