​उत्तर प्रदेश: विकास की राह पर रोड़े! सीतापुर की सहादतनगर ग्राम पंचायत में ‘खराब सड़कें, खुले भ्रष्टाचार’ ने बढ़ाई ग्रामीणों की मुसीबत

​उत्तर प्रदेश: विकास की राह पर रोड़े! सीतापुर की सहादतनगर ग्राम पंचायत में ‘खराब सड़कें, खुले भ्रष्टाचार’ ने बढ़ाई ग्रामीणों की मुसीबत

संवाददाता,, नरेश गुप्ता

सीतापुर: एक ओर जहाँ उत्तर प्रदेश सरकार गाँवों को ‘मॉडल’ बनाने और विकास की नई ऊँचाइयों पर ले जाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने का दावा कर रही है, वहीं दूसरी ओर सीतापुर जिले की ऐलिया ग्राम पंचायत के सहादतनगर गाँव की हकीकत इन दावों की पोल खोल रही है। यहाँ की सड़कों की बदहाली और गाँव के रास्तों पर पसरा जलभराव व कीचड़ ग्रामीणों के लिए बड़ी परेशानी का सबब बन चुका है, जिससे ग्रामीणों में सरकारी धन के कथित दुरुपयोग और भ्रष्टाचार को लेकर गहरा आक्रोश है।

​जर्जर रास्ते, कीचड़ और संक्रामक रोगों का खतरा

​सहादतनगर गाँव में छत्रपाल, धनपाल, गोविंद और मोहन जैसे ग्रामीणों के घरों के सामने से गुजरने वाली मुख्य सड़कों की हालत बेहद दयनीय है। रास्ते में बड़े-बड़े गड्ढे हैं, जिसने आवागमन को लगभग असंभव बना दिया है।

​सबसे चिंताजनक स्थिति यह है कि इन रास्तों पर नालियों का गंदा पानी भरा रहता है। इस कारण पूरे रास्ते में कीचड़ और जलभराव की गंभीर स्थिति पैदा हो गई है। यह सिर्फ आवाजाही की समस्या नहीं है, बल्कि इस गंदे पानी और कीचड़ के कारण ग्रामीणों के बीच संक्रामक रोगों के फैलने का खतरा भी लगातार मंडरा रहा है।

​प्रधानी पर उठे सवाल, अधिकारियों की अनदेखी

​गाँव वालों का आरोप है कि प्रधानी के पाँच वर्ष पूरे हो जाने के बावजूद भी सहादतनगर की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। उनका स्पष्ट कहना है कि विकास के नाम पर आए सरकारी धन का केवल ‘बंदरबांट’ किया जा रहा है और जमीनी स्तर पर कोई काम नहीं हुआ है।

​ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने अपनी इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए कई बार जिम्मेदार अधिकारियों से शिकायत भी की है, लेकिन अफसोस की बात है कि समस्या के समाधान के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। अधिकारियों की इस अनदेखी के कारण ग्रामीणों का गुस्सा और निराशा बढ़ती जा रही है।

​सरकारी दावों के विपरीत, सहादतनगर की यह तस्वीर दिखाती है कि गाँव के विकास की योजनाओं में भारी खामियाँ हैं और सरकारी धन का सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है। ऐसे में, यह सवाल खड़ा होता है कि ‘मॉडल गाँव’ की परिकल्पना कैसे पूरी होगी, जब बुनियादी सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं हैं और भ्रष्टाचार के आरोप खुलेआम लग रहे हैं।

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