ऑपरेशन क्लीन’ हुआ ‘सरकारी स्वांग’:अटरिया नहर विभाग और ‘कब्ज़ा-माफ़िया’ की ‘डील’ ने फिर किया ‘अतिक्रमण’ को सुपर-डुपर हिट!

‘ऑपरेशन क्लीन’ हुआ ‘सरकारी स्वांग’: सीतापुर में नहर विभाग और ‘कब्ज़ा-माफ़िया’ की ‘डील’ ने फिर किया ‘अतिक्रमण’ को सुपर-डुपर हिट!

अटरिया, सीतापुर। जनपद के सिधौली विकासखंड क्षेत्र की अटरिया माइनर पर नहर विभाग की कथित ‘अतिक्रमण हटाओ मुहिम’ अब सिर्फ़ कागज़ी खानापूर्ति और एक ‘प्री-प्लान्ड ड्रामा’ साबित हो चुकी है। जिस शोर-शराबे और मीडिया कवरेज के साथ विभाग ने कुछ दिनों पहले ‘कब्ज़े हटाने’ का ढोंग रचा था, उसका क्लाइमेक्स भ्रष्टाचार और मिलीभगत की स्याही से लिखा गया है।

​नतीजा सबके सामने है: अवैध कब्ज़ाधारियों ने सरकारी तंत्र को खुली चुनौती देते हुए, कार्रवाई के कुछ ही दिनों बाद, माइनर की ज़मीन पर फिर से ‘कुंडली जमा ली है’। विभाग के अधिकारी इस खुले ‘रि-एनक्रोचमेंट’ के सामने आश्चर्यजनक चुप्पी साधे हुए हैं, जिसने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह पूरा खेल ऊपर से नीचे तक व्याप्त भ्रष्टाचार की ‘चोली-दामन’ दोस्ती का हिस्सा है।

​’जैसे को तैसे’ की कहावत सच: भ्रष्टाचार की ‘आओ भगत’ का नया दौर

​स्थानीय सूत्रों और घटनाक्रम पर करीब से नज़र रखने वाले लोगों के अनुसार, इस दिखावटी और आधे-अधूरे ‘ऑपरेशन क्लीन’ से सिर्फ इतना हुआ है कि इसने कुछ भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों को अतिक्रमणकारियों से ‘आओ भगत’ (यानी मोटा लिफाफा/रिश्वत) लेने का एक और सुनहरा अवसर प्रदान कर दिया है।

  • सवाल: क्या कारण है कि ज़मीन से अवैध कब्ज़े हटाने के बाद, विभाग ने दोबारा कब्ज़ा होने से रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया?
  • सच्चाई: अटरिया माइनर की ज़मीन पर अवैध कब्ज़ों का इतनी तत्परता से बहाल हो जाना और विभाग का तुरंत ‘मौन’ धारण कर लेना, इस बात को पुख्ता करता है कि सरकारी तंत्र ने इस ‘सरकारी-माफ़िया गठजोड़’ को अब एक अघोषित ‘रीत’ बना लिया है। यह दिखाता है कि ‘एक्शन’ सिर्फ़ ‘स्क्रीनप्ले’ का हिस्सा था, और ‘करप्शन’ ही वास्तविक क्लाइमेक्स बनकर उभरा है।

​जनता का आक्रोश: ‘एक्शन’ हेडलाइन में, ‘करप्शन’ ज़मीन पर

​आम जनता, जो नहरों को जीवनरेखा मानती है, अब इस “एक्शन दिखाओ, फिर मौन सहमति दो” वाले सरकारी फ़ॉर्मूले को अच्छी तरह से पहचान चुकी है। पहले विभाग बड़े-बड़े ऐलान करता है, मीडिया में हेडलाइनें बनती हैं, और दो-तीन दिन बाद ही कब्ज़ों को फिर से स्थापित होने की ‘अघोषित अनुमति’ मिल जाती है। इसके एवज में अधिकारियों की ‘खूब आओ भगत’ शुरू हो जाती है।

​नहरों की ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा निरंतर बरकरार रहना और विभाग की शातिर चुप्पी, सरकारी तंत्र में फैले गहरे भ्रष्टाचार और जवाबदेही की भयानक कमी को उजागर करती है। यह घटना दर्शाती है कि अधिकारियों और माफ़ियाओं के इस दुर्भावनापूर्ण गठजोड़ के कारण सरकारी संपत्तियां और ज़मीनें सिसक रही हैं

​यह देखना होगा कि क्या ज़िला प्रशासन इस खुली चुनौती को स्वीकार कर इन भ्रष्ट अधिकारियों पर लगाम लगाएगा, या फिर नहर की भूमि पर भ्रष्टाचार की यह ‘सुपरहिट’ फ़सल इसी तरह लहलहाती रहेगी?

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