हरदोई। शिव सत्संग मण्डल के केन्द्रीय संयोजक अम्बरीष कुमार सक्सेना के अनुसार महावीर जयंती जैन समुदाय का विशेष पर्व होता है। इस जयंती को महावीर स्वामी के जन्म के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे।
महावीर ने पूरे जगत के समक्ष जो अहिंसा का सबसे बड़ा संदेश दिया है।उसका सम्मान पूरा जगत करता है। इससे यह सिद्ध होता है कि प्रेम से, सांप्रदायिक सद्भाव से और मिलजुलकर आगे बढ़ने से ही जीवन में सुख आ सकता है। जिओ और जीने दो यह सिद्धांत भगवान महावीर ने स्थापित किया था। इसी सिद्धांथ पर संसार चल रहा है। महावीर स्वामी भले ही जैन समाज के 24वें तीर्थकर हो सकते हैं परंतु उन्होंने मानवता के कल्याण के लिए ,परोपकार का जो उदाहरण दिया उसे पूरा संसार आत्मसात कर रहा है। समाज के कल्याण के लिए महावीर स्वामी ने महज 30 वर्ष की आयु में ही संन्यास ले लिया था। चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को महावीर जी की जयंती मनाई जाती है।
जैन समाज के सिद्धांतों की बात की जाए तो ये सब जीवन के उन पांच बिंदुओं में से है जिसकी हर व्यक्ति को, हर परिवार को, हर समाज को और प्रत्येक राष्ट्र के साथ-साथ समूचे विश्व को आत्मसात करने की आवश्यकता है।जैन धर्म नहीं, बल्कि जीवन जीने की पद्धति है। आज समय की जरूरत भी यही है कि हर व्यक्ति जैन समाज की जीवन पद्धति को आत्मसात करे। इनके जीवन के पांच सिद्धांतों सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य को पंचशील सिद्धांतों के रूप में देखा जाता है।धार्मिक आदर्श जीवन के लिए इनका बहुत महत्व है।राजनीतिक, सामाजिक या आर्थिक जीवन में भी कोई भी इन सभी सिद्धांतों को अगर अपने जीवन में यदि उतार ले तो समस्याएं खत्म हो सकती हैं। तीर्थंकर महावीर के पंचशील सिद्धांतों में सर्वप्रथम है सत्य। जीवन में हर किसी को सत्य बोलना चाहिए।अगर हम जीवन में सत्य की राह का अनुसरण करें तो हमें कोई समस्या नहीं आ सकती।
दूसरा पंचशील सिद्धांत जो महावीर स्वामी ने दिया वह अहिंसा है। हर हालत में हमें हिंसा से दूर रहना है। पशु-पक्षियों या प्रकृति के किसी भी जीव के प्रति हिंसा तो दूर हिंसा की भावना भी हमारे हृदय में नहीं होनी चाहिए। प्रेम का यह संदेश सचमुच सुखी जीवन का आधार है। तीसरा संदेश महावीर ने अपरिग्रह का दिया है। अर्थात आवश्यकता से अधिक किसी भी वस्तु का हमें संचय नहीं करना चाहिए। अर्थात हमें त्यागशील होना चाहिए। आज पद, प्रतिष्ठा और कुर्सी को लेकर लोग अपने-अपने तर्क देकर द्वंद की बात करते हैं लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने सिंहासन का त्याग कर वनगमन स्वीकार किया था। इसी तरह ब्रह्मचर्य अर्थात व्यक्ति को बिलासिता से दूर रहकर ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करना चाहिए। यह अपने आप में एक आदर्श संदेश है।जिस क्षमा का महावीर स्वामी ने उल्लेख किया है, इसका महत्व बहुत बड़ा है। कहा गया है क्षमा वीरस्य भूषणम: अर्थात जो लोग क्षमा करते हैं वे वीर होते हैं या यह भी कह सकते हैं कि बहादुर लोगों का सबसे बड़ा गहना क्षमा है।आज वैश्विक शांति के लिए दुनिया को क्षमा के मार्ग पर चलना चाहिए।
तीर्थंकर महावीर ने कठोर तप करने के बाद अपनी इंद्रियों पर विजय पा ली थी। अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करके रखना और दूसरो के भले के लिए तैयार रहना, यह एक परोपकार की भावना है जिसके युगपुरुष महावीर हैं।
जीवन में प्रेम, भाईचारा, संबंधों में सद्भाव बहुत जरूरी है।महावीर स्वामी से यही संदेश हमें महावीर जयंती पर लेना है। तभी 2621 वीं महावीर जयंती की सार्थकता है।