विश्व स्वास्थ्य दिवस और भारत की भूमिका

मृत्युंजय दीक्षित

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ), के स्थापना दिवस 7 अप्रैल को ही विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र संघ की एक अनुषांगिक इकाई है जो विश्व के देशों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर वैश्विक सहयोग तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी विविध एवं मानक विकसित और स्थापित करती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के 193 सदस्य देश तथा दो संबद्ध सदस्य देश हैं इसकी स्थापना 7 अप्रैल 1948 को की गयी थी जबकि विश्व स्वास्थ्य दिवस वर्ष 1950 से मनाया जा रहा है।इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन अपनी 75 वर्षगाँठ मना रहा है इसलिए इस बार का विश्व स्वास्थ्य दिवस विशेष उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य दिवस लोगों के स्वास्थ्य स्तर में सुधार करने हेतु उनमें स्वास्थ्य सम्बन्धी विषयों पर जागरुकता लाने के लिए मनाया जाता है। भारत भी विश्व स्वास्थ्‍य संगठन का एक सदस्य देश है अतः भारत में भी इस दिन को विविध आयोजन किए जाते हैं।


विश्व स्वास्थ्य संगठन की परिभाषा के अनुसार दैहिक, मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ या समस्या रहित होना ही स्वस्थ होना है यह मात्र शरीर में रोग की अनुपस्थिति मात्र नहीं है। इतना ही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन ऐसे पर्यावरणीय कारकों पर भी ध्यान देता है जो किसी रोग के जनक या कारक हो सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व भर में प्रतिवर्ष 1.3 करोड़ से अधिक लोग पर्यावरणीय कारणों से अपने जीवन से हाथ धोते हैं। इन कारणों में जलवायु संकट शामिल है जो मानवता के सामने सबसे बड़ा स्वास्थ्य खतरा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जलवायु संकट भी एक स्वास्थ्य संकट माना है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रतिवर्ष, विश्व स्वास्थ्य दिवस के लिए एक विषय (थीम) चुनता है और वर्ष पर्यंत सारे जागरुकता कार्यक्रम उसी विषय के अनुसार संचालित किये जाते हैं। उदहारण के रूप में वर्ष 2022 का विषय, “हमारा ग्रह-हमारा स्वास्थ्य” था और वर्ष 2023 का विषय है “सभी के लिए स्वास्थ्य”।
भारतीय संस्कृति, “सर्वे सन्तु निरामयः” कहकर प्रत्येक प्राणी के स्वास्थ्य की कामना करती है और संभवतः यही विश्व स्वास्थ्य संगठन के वर्ष 2023 के विषय “सभी के लिए स्वास्थ्य” का मंतव्य है। विगत दो-तीन वर्षों में कोरोना महामारी के कारण स्वास्थ्य के क्षेत्र में हुई भारी उथल पुथल ने विश्व का ध्यान प्राचीन भारतीय स्वास्थ्य विधियों योग, प्राणायाम और आयुर्वेद की दिशा में आकर्षित किया है। भारत के प्रयासों से योग को पहले ही स्वस्थ जीवन के मूल उपाय के रूप में मान्यता मिल चुकी है और पूरा विश्व 23 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाता है।
आयुर्वेद आहार को भी औषधि के रूप में ही मान्यता देता है क्योंकि आहार पोषण का आधार है और पोषण स्वास्थ्य का। समुचित पोषण भी स्वस्थ जीवन का एक महत्वपूर्ण कारक है और विश्व की बड़ी जनसंख्या को जिसमें सीमित और कम आय वाले देशों की जनसंख्या शामिल है उसको पर्याप्त पोषण मिल सके इस दृष्टि से भारत ने मोटा अनाज या श्री अन्न के प्रचार प्रसार और उत्पादन बढ़ाने की दिशा में कार्य किया। भारत के प्रयासों के परिणामस्वरूप वर्ष 2023 “विश्व मोटा अनाज वर्ष” के रूप में मनाया जा रहा है।
विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर सभी भारतीयों को “विश्व योग दिवस” और “विश्व मोटा अनाज वर्ष” पर गर्व करना चाहिए, ये भारत की धरती का विश्व को उपहार हैं।
विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर एक सामान्य नागरिक के रूप में हमारा योगदान यही होता है कि हम स्वस्थ जीवन के कुछ मूल नियमों के पालन का प्रण लेते हुए उन्हें अपने जीवन में उतारें। हमारी आज की सुविधा जनक जीवन शैली और खान पान कई जीवनशैली आधारित स्वास्थ्य समस्याओं की कारक है, हम उसमें सुधार के लिए कुछ लक्ष्य निर्धारित कर सकते हैं जैसे – कोल्ड ड्रिंक और जंक फ़ूड को मना करना, प्रतिदिन थोड़ा शारीरिक श्रम अथवा व्यायाम करना, दिनचर्या व्यवस्थित रखना, धूम्रपान और अल्कोहल के सेवन से बच कर रहना, अपने आस पास के पर्यावरण को स्वच्छ रखना जिससे मच्छर न पनपने पाएं, भोजन को हाथ लगाने से पूर्व हाथ धोना, निराशा और अवसाद से दूर रहने के लिए किसी अन्य के साथ अपनी तुलना न करना – ये छोटे छोटे स्वास्थ्य सम्बन्धी व्यवहार हमारे जीवन की गुणवत्ता पर बड़ा प्रभाव डालते हैं और हमारे अच्छे स्वास्थ्य की नींव बनते हैं।

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