– एनएफएचएस के आंकड़े बयां कर रहे बदलाव की कहानी
लखीमपुर खीरी। जिले की महिलाएं अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हो रही है। जिसके चलते प्रजनन, पोषण, मातृ, शिशु और बाल स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार हुआ है। बाल विवाह की दर में गिरावट को भी महिला स्वास्थ्य के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस बात को मजबूती दे रहा है राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 4 और 5 के आंकड़ों का अध्ययन। इस अध्ययन से पता चलता है कि माहवारी के दिनों में साफ-सफाई, शरीर में खून की कमी या फिर गर्भधारण के लिए सही उम्र की बात हो हर स्वास्थ्य मुद्दे को लेकर महिलाएं जागरूक हुई हैं।
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*यह है बदलाव की तस्वीर —*
बाल विवाह कम होने से कम उम्र में मां बनने वाली महिलाआें की संख्या में भी गिरावट आई है। एनएफएचएस-4 और 5 के आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन से पता चलता है कि वर्ष 2015-16 में 15 से 19 साल की आयुवर्ग की 6.3 प्रतिशत महिलाएं या तो मां बन जाती थी या फिर वह गर्भवती हो जाती थीं। लेकिन वर्ष 2020-21 में इसी आयुवर्ग की महिलाओं के संबंध में यह आंकड़ा घटकर 3.6 प्रतिशत रह गया। एनएफएचएस-4 और 5 के आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन करने से पता चलता है कि वर्ष 2015-16 में 15 से 24 साल की आयुवर्ग की 24.5 प्रतिशत महिलाएं माहवारी के दौरान सुरक्षित साधनों का प्रयोग करती थीं। लेकिन वर्ष 2020-21 में माहवारी के दौरान सुरक्षित साधनों का प्रयोग करने वाली महिलाओं की संख्या 58.1 प्रतिशत पहुंच गई है। एनीमिया (खून की कमी) की गंभीरता को भी महिलाओं ने अच्छी तरह से समझा है। एनएफएचएस-5 के अनुसार प्रसव के दौरान एनीमिया को लेकर उन्हें किसी प्रकार की परेशानी न हो इसके चलते 78 फीसद महिलाओं ने कम से कम 180 दिनों तक आयरन फोलिक एसिड का प्रयोग किया, जबकि वर्ष 2015-16 में यह आकड़ा क्रमश: 0.8 प्रतिशत ही था।
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*क्या कहते हैं सीएमओ —*
सीएमओ डॉ. संतोष गुप्ता बताते हैं कि कम उम्र में गर्भधारण करने से प्रजनन तंत्र को नुकसान पहुंच सकता है। ऐसे में मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। किशोरी के गर्भधारण के साथ ही उसे डायबिटीज के साथ कई और स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। कम उम्र में मां बनने पर बच्चे के प्रीमैच्योर होने की आशंका भी बढ़ जाती है। साथ ही बच्चे का वजन भी कम हो सकता है और बच्चे का शारीरिक व मानसिक विकास भी प्रभावित हो सकता है। संक्रमण हो सकता है।