आरबीएसके टीम की मदद से जन्मजात मूकबधिर गुनगुन व श्रेया की कानपुर में हुई मुफ्त सर्जरी
इटावा 18दिसंबर 2022।
केस 1
जसवंत नगर निवासी विमल की बेटी गुनगुन जन्म से ही सुन नहीं सकती थी , निजी अस्पतालों में दिखाया लेकिन कोई आस नहीं दिखी तभी गांव की आशा रामावती ने बताया जिला अस्पताल में एक कैंप लगेगा उस कैंप में जाकर बच्चे का बेरा टेस्ट (सुनने की क्षमता का पैरामीटर) कराएं। विमल बताते हैं कि उन्होंने अपनी 4 वर्षीय पुत्री को जिला अस्पताल में आकर दिखाया तब उन्हें पता चला राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत जो भी इलाज होगा वह निःशुल्क होगा। इससे मेरी चिंता थोड़ी कम हुई और कानपुर से आई टीम ने मुझे भरोसा दिलाया ऑपरेशन (कोकलियर इंप्लांट्स के लिए)के बाद बच्चे के अंदर धीरे-धीरे सुनने की क्षमता विकसित हो जाएगी। मैंने अपनी बच्ची का ऑपरेशन 2018 में कराया था उसके बाद स्पीच थैरिपी भी हुई। इसका परिणाम यह हुआ कि गुनगुन आज सुनने लगी है और धीरे-धीरे मुंह से बोल भी फूटने लगे हैं, इससे वह बेहद खुश हैं। विमल ने कहा कि मैं उन अभिभावकों को संदेश देना चाहूंगा जिनके बच्चे बधिर हैं,सही जानकारी व निशुल्क इलाज द्वारा आपका बच्चा भी पूर्णता स्वस्थ हो सकता है इसलिए हिम्मत न हारे।
केस 2
इटावा निवासी(नई मंडी) रंजना ने बताया कि जुलाई 2021 को मेरी 4 वर्षीय बेटी श्रेया के कोकलियर इंप्लांट किया गया था उसके बाद धीरे-धीरे स्पीच थेरेपी द्वारा बच्ची में सुनने की क्षमता विकसित हुई और जब उसने पहली बार मुझे मां कहकर बुलाया उस पल को मैं कभी भूल नहीं सकती। रंजना ने बताया कि जिला अस्पताल जाकर बच्ची को जब पहली बार दिखाया तब मुझे भी उम्मीद नहीं थी कि बच्ची के अंदर सुनने की क्षमता विकसित होगी लेकिन आरबीएसके के डॉक्टर सोहम ने मुझे इलाज के संदर्भ में पूरी जानकारी दी और सहयोग करने का आश्वासन दिया तब मैंने उनके सहयोग से कानपुर में हियरिंग क्लीनिक में बच्चे का ऑपरेशन कराया और धीरे-धीरे स्पीच थेरेपी द्वारा बच्ची में बोलने और सुनने की क्षमता विकसित हुई आज मैं बच्ची को बोलते और सुनते देखकर बहुत ही सुखद अनुभव करती हूं अगर यह ऑपरेशन में किसी निजी चिकित्सालय में कराता तो मेरा लगभग ₹8 लाख खर्च होता और मेरी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि मैं यह ऑपरेशन करा पाती इसलिए सरकार द्वारा मिली मदद मेरे लिए वरदान साबित हुई।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ गीताराम का कहना है की जन्म से सुनने और बोलेने की अक्षमता गंभीर समस्या है, जिसका असर आजीवन रह सकता है लेकिन अभिभावक सही जानकारी के साथ सावधानी बरतें तो बच्चे को इस समस्या से बचाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2018 से अब तक लगभग 21 बच्चों का कोकलियर इंप्लांट किया जा चुका है व कुछ चिन्हित जन्मजात बधिर बच्चों का बेरा टेस्ट किया जा चुका है और उनके इलाज की प्रक्रिया चल रही है जल्द ही उनका भी कोकलियर इंप्लांट किया जाएगा।
सीएमओ ने बताया कि आरबीएसके के द्वारा जन्मजात मूकबधिर बच्चों का नि:शुल्क उपचार कराया जाता है। उन्होंने बताया कि प्रति हजार में एक नवजात इस बीमारी का शिकार होता है। समय पर पहचान और तुरंत कॉकलियर इम्प्लांट सजर्री ही गूंगे व बहरेपन का सही इलाज है। देरी की सूरत में पीड़ित बच्चे के दिमाग के बोलने वाले हिस्से पर छह साल की उम्र के बाद सिर्फ देखकर समझने वाला दिमागी विकास हो पाता है। इसलिए जितनी जल्दी कॉकलियर इम्प्लांट सजर्री होगी, नतीजे उतने ही सकारात्मक होंगे।
क्या है कॉकलियर इम्प्लांट सर्जरी
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के डॉ सोहम प्रकाश ने बताया कि कॉकलियर एक बेहद संवेदनशील यंत्र (डिवाइस) होता है, जिसको ऑपरेशन द्वारा लगाया जाता है। मरीज को 2-3 दिन में अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है। ऑपरेशन की सफलता डॉक्टर, अस्पताल की सुविधाओं तथा इम्प्लांट करने की सर्जिकल तकनीक पर ज्यादा निर्भर करती है।