गोरखपुर, निजी अस्पताल के टीबी मरीज को भी मिल सकता है सरकारी योजनाओं का लाभ-डॉ गणेश

चिकित्सकों, पैरामेडिकल और नर्सिंग छात्रों का किया गया संवेदीकरण

गोरखपुर, 27 सितम्बर 2023

निजी चिकित्सक से इलाज करवा रहा टीबी मरीज भी निजी क्षेत्र में ही इलाज जारी रखते हुए सरकारी योजनाओं का लाभ ले सकता है । राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के तहत इसका प्रावधान किया गया है ताकि देश को टीबी मुक्त बनाने में निजी क्षेत्र की भी हिस्सेदारी हो सके । यह जानकारी जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ गणेश यादव ने दी । वह शहर के फातिमा हॉस्पिटल में चिकित्सकों, पैरामेडिकल और नर्सिंग छात्रों के संवेदीकरण कार्यक्रम को सोमवार को सम्बोधित कर रहे थे । इस मौके पर टीबी उन्मूलन कार्यक्रम की टीम ने कार्यक्रम के तहत उपलब्ध सभी सुविधाओं के बारे में जानकारी दिया ।

जिला क्षय रोग अधिकारी ने बताया कि निजी चिकित्सक चाहें तो अपनी फीस लेकर नियमित इलाज करने के साथ अन्य सभी सुविधाएं सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों से मरीज को दिलवा सकते हैं । ऐसे मरीजों को सीबीनॉट जांच, एचआईवी व मधुमेह की जांच, दवाएं, निक्षय पोषण योजना का लाभ और एडॉप्शन की सुविधा भी दी जा सकती है । ऐसे में अगर कोई भी ऐसा मरीज है जो टीबी के महंगे इलाज का खर्च वहन करने में सक्षम न हो तो उसे नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र या जिला क्षय रोग केंद्र भेज कर मदद करें ।

डॉ यादव ने बताया कि नये टीबी मरीज की सूचना देने वाले निजी चिकित्सक को भी 500 रुपये देने का प्रावधान है । अपनी देखरेख में मरीज का इलाज पूरा करवाने पर 500 रुपये और दिये जाते हैं । यही नहीं नये टीबी मरीज के गैर सरकारी सूचनादाता को भी 500 रुपये देने का प्रावधान है । अगर कोई निजी चिकित्सक अपनी फीस लेकर मरीज का अपनी देखरेख में इलाज करता है और दवा व अन्य सुविधाएं सरकारी अस्पताल से दिलवाता है तब भी चिकित्सक को ही इलाज सफल होने पर लाभ मिलेगा, लेकिन अगर मरीज निजी क्षेत्र से सरकारी में ट्रांसफर हो जाता है तो आऊटकम का लाभ नहीं मिलता है । निजी क्षेत्र के टीबी मरीज को दवा और सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाने के लिए सरकारी क्षेत्र में मरीज को ट्रांसफर करने की भी आवश्यकता नहीं होती है ।

कार्यक्रम के जिला समन्वयक धर्मवीर प्रताप सिंह ने बताया कि टीबी मरीज की सरकारी अस्पतालों में ड्रग सेंस्टिविटी जांच की जाती है । ड्रग सेंस्टिव मिलने पर छह महीने इलाज चलता है और मरीज ठीक हो जाता है। ड्रग रेसिस्टेंट टीबी का मरीज होने पर इलाज की अवधि डेढ़ से दो साल तक की हो सकती है । प्रत्येक टीबी मरीज की एचआईवी व मधुमेह की जांच कराई जाती है । चेस्ट फिजिशियन डॉ एएन त्रिगुण ने एक्स रे तकनीकी के बारे में जानकारी दिया । कार्यक्रम का संचालन पीपीएम समन्वयक अभय नारायण मिश्र ने किया । इस अवसर पर अस्पताल के निदेशक फादर साबू, फादर विल्सन, चिकित्सक डॉ संदीप, डॉ नवीन, डॉ विनय सिन्हा, डॉ दिव्या, डॉ सौरभ पांडेय, डॉ कीर्ति, डब्ल्यूएचओ कंसल्टेंट डॉ दीपक चतुर्वेदी, पीपीएम समन्वयक मिर्जा आफताब बेग, प्रो बीना, रोहित, वंदना, रिचा, अल्का, वंदना मार्टिन, विजाय, अलीसा और एनटीईपी टीम के सहयोगी राजकुमार प्रमुख तौर पर मौजूद रहे।

पोषण की महत्ता को जाना

अस्पताल की नर्स मुन्नी ने बताया कि कार्यक्रम में टीबी संबंधी सभी सरकारी योजनाओं की जानकारी मिली । यह भी पता चला कि निजी अस्पताल के टीबी मरीज को भी 500 रुपये प्रति माह पोषण के लिए मिलते हैं ताकि वह पौष्टिक खानपान दूध, अंडा, मांस आदि का सेवन कर जल्दी ठीक हो सके। टीबी मरीज के ठीक होने में पोषण की अहम भूमिका है।

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