अटरिया, अतिक्रमण की भेंट चढ़ी सिंचाई माइनर, प्रशासन की अनदेखी से किसान परेशान

संवाददाता,, नरेश गुप्ता

सीतापुर: अटरिया, सिधौली में सिंचाई विभाग के कार्यालय से कुछ ही दूरी पर स्थित एक महत्वपूर्ण माइनर पर बड़े पैमाने पर अवैध कब्जा किया जा रहा है। पटरी दुकानदारों ने न सिर्फ माइनर के ऊपर दुकानें लगा ली हैं, बल्कि सीमेंट और ईंटों का इस्तेमाल करके पक्की पुलिया भी बना ली हैं, जिससे माइनर का प्राकृतिक प्रवाह बाधित हो रहा है। यह सब सिंचाई विभाग के अधिकारियों की नाक के नीचे हो रहा है, जिससे उनकी कार्यप्रणाली और मिलीभगत पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।

किसानों के लिए जीवनरेखा माइनर पर अतिक्रमण

यह माइनर क्षेत्र के किसानों के लिए सिंचाई का एक महत्वपूर्ण साधन है। इस पर हो रहे अतिक्रमण से जल प्रवाह बाधित हो रहा है, जिससे किसानों को सिंचाई में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस अवैध निर्माण में कुछ सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत भी हो सकती है। वे सुविधा शुल्क लेकर दुकानदारों को अवैध कब्जा करने की छूट दे रहे हैं। हालांकि, नहर विभाग के अधिकारियों ने सुविधा शुल्क के आरोपों से इनकार किया है और कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है।

जलभराव और जल प्रवाह में बाधा

दुकानदारों ने माइनर के दोनों किनारों पर अपनी दुकानें बनाकर जलमार्ग को संकरा कर दिया है। इसके अलावा, उन्होंने अपनी सुविधा के लिए सीमेंट की पक्की पुलिया भी बना ली हैं, जो माइनर के प्राकृतिक प्रवाह को रोक रही हैं। इस तरह के निर्माण से न सिर्फ जल प्रवाह बाधित होता है, बल्कि बारिश के मौसम में जलभराव की समस्या भी पैदा हो सकती है, जिससे आसपास के लोगों को भी परेशानी उठानी पड़ सकती है।

अवर अभियंता ने साधी चुप्पी

अटरिया माइनर के अवर अभियंता तरुण त्रिवेदी से जब इस गंभीर मामले पर बात की गई तो उन्होंने मामले को गोल-मोल कर टाल दिया। यह उनकी ओर से कार्रवाई में उदासीनता और लापरवाही को दर्शाता है। स्थानीय निवासियों और किसानों ने इस अवैध कब्जे के खिलाफ कई बार शिकायतें की हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई है। उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप किया जाए और माइनर को अतिक्रमण से मुक्त कराया जाए।

यह मामला सरकारी विभागों की लापरवाही और मिलीभगत को उजागर करता है, जहां अवैध निर्माण धड़ल्ले से जारी हैं और अधिकारी आंखें मूंदे बैठे हैं। देखना यह होगा कि क्या प्रशासन किसानों की दुर्दशा पर ध्यान देता है और इस गंभीर मुद्दे पर कोई ठोस कार्रवाई करता है।

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