अटरिया,, नहर विभाग का ‘दिखावा’ बेनकाब: अटरिया माइनर पर भ्रष्टाचार की ‘फ़सल’ फिर लहलहाई, अधिकारी ‘मौन सहमति’ की मुद्रा में

नहर विभाग का ‘दिखावा’ बेनकाब: अटरिया माइनर पर भ्रष्टाचार की ‘फ़सल’ फिर लहलहाई, अधिकारी ‘मौन सहमति’ की मुद्रा में

सीतापुर ब्यूरो रिपोर्ट

​अटरिया , सीतापुर। जनपद के सिधौली विकासखंड क्षेत्र में अटरिया माइनर पर नहर विभाग की तथाकथित ‘अतिक्रमण हटाओ मुहिम’ अब पूरी तरह से फर्जीवाड़ा साबित हो चुकी है। जिस शोर-शराबे के साथ विभाग ने एक हफ्ता पहले ‘एक्शन’ का ढोंग रचा था, वह महज़ एक ‘प्री-प्लान्ड ड्रामा’ था, जिसका एकमात्र नतीजा यह निकला है कि अवैध कब्ज़ाधारियों ने विभाग को खुली चुनौती देते हुए माइनर की ज़मीन पर फिर से ‘कुंडली जमा ली है’।

विभाग के अधिकारी इस खुले विद्रोह के सामने चुप्पी साधे हुए हैं, जिससे यह साफ ज़ाहिर होता है कि यह पूरा खेल ऊपर से नीचे तक मिलीभगत का है।

​’जैसे को तैसे’ की कहावत सच: भ्रष्टाचार की ‘आओ भगत’ का नया दौर

​स्थानीय सूत्रों के अनुसार, इस दिखावटी कार्रवाई से केवल इतना हुआ है कि कुछ भ्रष्ट अधिकारियों को अतिक्रमणकारियों से ‘आओ भगत’ (यानी मोटा लिफाफा ) लेने का एक और अवसर मिल गया है। अटरिया माइनर की ज़मीन पर अवैध कब्ज़ों का तुरंत बहाल हो जाना और विभाग का ‘मौन’ धारण कर लेना, इस बात की पुष्टि करता है कि सरकारी तंत्र ने इस ‘गठजोड़’ को एक ‘रीत’ बना लिया है।

​जनता का आक्रोश: ‘एक्शन’ हेडलाइन में, ‘करप्शन’ ज़मीन पर

​आम जनता अब इस “एक्शन दिखाओ, फिर मौन सहमति दो” वाले सरकारी फॉर्मूले को अच्छी तरह से पहचान चुकी है। विभाग पहले ज़ोर-शोर से ऐलान करता है, दो दिन बाद कब्ज़ों को फिर से स्थापित होने की ‘अघोषित अनुमति’ देता है, और इसके एवज में अधिकारियों की ‘खूब आओ भगत’ शुरू हो जाती है।


​नहरों की ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा बरकरार रहना और विभाग की शातिर चुप्पी, सरकारी तंत्र में फैले गहरे भ्रष्टाचार और जवाबदेही की कमी को उजागर करती है। यह घटना दर्शाती है कि अधिकारियों और माफियाओं के इस ‘चोली-दामन’ वाले गठजोड़ के कारण सरकारी ज़मीनें सिसक रही हैं।


​जनता अब सवाल कर रही है: क्या विभाग इस खुली चुनौती को स्वीकार कर इन भ्रष्ट अधिकारियों पर लगाम लगाएगा, या फिर नहर की भूमि पर भ्रष्टाचार की यह ‘फसल’ इसी तरह लहलहाती रहेगी?

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