
🚧 उपेक्षा का शिकार अटरिया माइनर: अतिक्रमण और कचरे से सिमटता अस्तित्व, ‘नहर’ बनी ‘नाली’
संवाददाता,, नरेश गुप्ता
अटरिया सीतापुर: सिधौली क्षेत्र की अटरिया माइनर नहर आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। कभी किसानों के खेतों तक जीवनदायी जल पहुँचाने वाली यह नहर अब स्थानीय लोगों के अवैध अतिक्रमण और सिंचाई विभाग की घोर लापरवाही के कारण कचरे के ढेर वाली नाली में तब्दील होती जा रही है। नहर की सफाई और चौड़ीकरण के लिए कोई गंभीर प्रयास न होने से इसका मूल स्वरूप लगातार सिमट रहा है, जिससे क्षेत्र के किसानों में भविष्य को लेकर गहरा डर पैदा हो गया है।

📉 सिमटते जलमार्ग की दर्दनाक कहानी: अतिक्रमण और पाटन की दोहरी मार
अटरिया माइनर के सिकुड़ने के पीछे दो मुख्य कारण स्पष्ट रूप से जिम्मेदार हैं। पहला कारण है नहर की पटरी और किनारे पर हुआ अवैध पाटन और अतिक्रमण।
- अवैध पाटन: स्थानीय लोगों ने नहर के एक बड़े हिस्से को मिट्टी और मलबे से पाटकर आम रास्ता बना दिया है। इस मनमाने पाटन से नहर की चौड़ाई बहुत कम हो गई है।
- अवैध कब्ज़ा: नहर के दोनों किनारों पर अवैध कब्जे किए जा रहे हैं, जिससे इसका मूल क्षेत्रफल लगातार घटता जा रहा है और जल प्रवाह के लिए पर्याप्त जगह नहीं बच रही है।
इन दोनों गतिविधियों ने मिलकर नहर के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है, जिससे नहर की पहचान एक सिंचाई स्रोत के रूप में मिटती जा रही है।
🗑️ कचरे का दलदल और विभागीय उदासीनता: 50 मीटर दूर है ऑफिस
नहर के लिए दूसरी बड़ी समस्या है भारी मात्रा में कूड़ा-कचरा। स्थानीय दुकानदारों और निवासियों द्वारा लगातार कचरा फेंके जाने से नहर का तल पूरी तरह से पट चुका है।
- कचरा बना मुख्य अवरोध: जगह-जगह प्लास्टिक, निर्माण सामग्री और घरेलू कचरा जमा होने से जलमार्ग पूरी तरह अवरुद्ध हो गया है, जिससे यह अब पानी की निकासी करने वाली नाली जैसा दिखने लगा है, न कि सिंचाई नहर जैसा।
- अधिकारी आँखें मूंदे हुए: सबसे गंभीर बात यह है कि सिंचाई विभाग का अटरिया ऑफिस इस प्रदूषित और अतिक्रमित नहर से महज 50 मीटर की दूरी पर स्थित है। इसके बावजूद, विभाग के अधिकारी अपने कामकाज में इतने व्यस्त हैं कि उन्हें नहर की सफाई या रखरखाव की ज़रा भी परवाह नहीं है।
👨🔧 सहायक अवर अभियंता की कथित लापरवाही: समस्या पर ध्यान नहीं
स्थानीय लोगों का आरोप है कि सिंचाई विभाग के सहायक अवर अभियंता तरुण त्रिवेदी इस गंभीर समस्या को महत्व नहीं दे रहे हैं।
- सफाई को अनदेखा करना: अधिकारियों की इस उदासीनता के चलते नहर की सफाई का कार्य लंबे समय से रुका हुआ है। नहर की दुर्दशा से यह स्पष्ट है कि विभाग फील्ड पर कोई मॉनिटरिंग या कार्रवाई नहीं कर रहा है।
🌾 किसानों में गहरा डर: भविष्य में पानी का संकट तय
क्षेत्र के किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें साफ देखी जा सकती हैं। उनका डर है कि अगर नहर ऐसे ही सिमटती रही और कचरे से पटी रही, तो इसमें जल प्रवाह बिल्कुल ना के बराबर हो जाएगा।
- सिंचाई संकट: किसानों का कहना है कि वैसे भी इस नहर में पानी कभी-कभार ही आता है, लेकिन अगर अतिक्रमण और कचरा इसी तरह बढ़ता रहा, तो सिंचाई के लिए उपलब्ध होने वाला यह अल्प जल भी पूरी तरह रुक जाएगा, जिससे उनकी फसलें बर्बाद हो सकती हैं। किसानों ने शीघ्र चौड़ीकरण और सफाई की मांग की है ताकि नहर को उसके पुराने स्वरूप में वापस लाया जा सके।
