आशा की सलाह मानी तो बारह माह में कुष्ठ मुक्त हो गये उमेश
पहले निजी अस्पताल में हजारों रुपये खर्च करके कराया था इलाज
चरगांवा पीएचसी से चली दवाओं से मिली बीमारी से मुक्ति
गोरखपुर, 08 फरवरी 2023
कुष्ठ एक ऐसी बीमारी है जिसकी समय से पहचान हो जाए तो रोगी इलाज से पूरी तरह ठीक हो जाता है । इलाज के बाद इसका एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में प्रसार भी रुक जाता है । समुदाय से कुष्ठ रोग की पहचान में आशा कार्यकर्ता की अहम भूमिका होती है । ऐसी ही एक आशा कार्यकर्ता की सलाह मान कर 24 वर्षीय उमेश कुष्ठ मुक्त हो चुके हैं। उन्हें मल्टी बेसिलाई(एमबी) कुष्ठ रोग था जिसका बारह माह इलाज चला । सरकारी प्रावधानों के तहत चरगांवा पीएचसी से दवा शुरू करने से पूर्व उमेश ने निजी डॉक्टर से हजारों रुपये की दवा कराई थी लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
चरगांवा पीएचसी पर फॉलो अप के लिए पहुंचे चरगांवा ब्लॉक निवासी उमेश ने बताया कि करीब पांच वर्ष पूर्व सबसे पहले उनके बायें पैर में धब्बा बना।और फिर दायें पैर में। उसके बाद पीठ पर धब्बा आया और फिर चेहरे पर। चमड़ी के रंग से हल्के रंग के इन धब्बों पर गर्मी या ठंडी का कोई असर नहीं दिखता था। करीब चार वर्षों तक इन दाग धब्बों पर उन्होंने खास ध्यान नहीं दिया । जनवरी 2022 में वह एक दुर्घटना में चोटिल हो गये और उनके बायें पैर से खून भी निकला लेकिन धब्बे वाले स्थान पर बिल्कुल दर्द नहीं हुआ। जहां से दुर्घटना का इलाज करवा रहे थे वहीं से इन धब्बों की भी दवा लेने लगे, लेकिन कोई असर नहीं हुआ । उनके गांव की आशा सुधा ने उन्हें बताया कि वह कुष्ठ के संभावित रोगी हैं और उन्हें चरगांवा पीएचसी जाकर इलाज करवाना चाहिए। इसके इलाज की सम्पूर्ण सुविधा सिर्फ सरकारी अस्पताल में ही है ।
उमेश बताते हैं कि चरगांवा में प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉ धनंजय कुशवाहा के पास गये जहां से उन्हें तत्कालीन नान मेडिकल असिस्टेंट (एनएमए) दिनेश श्रीवास्तव के पास भेजा गया। दिनेश ने उन्हें बीआरडी मेडिकल कॉलेज भेज कर सेंसेशन की जांच करवाई और वहां से वापस चरगांवा आए जहां दवा शुरू की गयी । छह दवाओं की सुपरवाइजरी डोज दिनेश ने अपने सामने खिलवाई। जिस दिन दवा खाया उस दिन पेशाब का रंग लाल हो गया लेकिन उन्हें पहले से यह बताया गया था कि इससे घबराना नहीं है, यह सिर्फ दवा का असर है, इसलिए उन्होंने दवा बंद नहीं की। उमेश के शरीर पर छह से अधिक धब्बे थे और दोनों हाथों की कुहनियों की नसें भी प्रभावित थीं इसलिए उन्हें एमबी कुष्ठ रोग की दवा चली। अब वह ठीक हो चुके हैं और सुन्न जगहों पर ठंडा व गरम का एहसास होने लगा है।
चरगांवा के वर्तमान नान मेडिकल असिस्टेंट (एनएमए) विनय कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि मार्च 2022 में उमेश की दवा शुरू हुई थी और जनवरी 2023 में वह स्वस्थ हो गये। उनके घर समेत दस घरों में कांटैक्ट ट्रेसिंग की गयी और सभी को बचाव की दवा खिलाई गई। गांव में न तो कोई अन्य रोगी है और न ही अब इस रोग का प्रसार होगा। समय से पहचान और इलाज से उमेश दिव्यांगता से बच गये और रोग का प्रसार भी रुक गया है। इस कार्य में आशा की अहम भूमिका रही है और उन्हें नया रोगी खोजने के लिए 250 रुपये और इलाज पूरा करवाने के लिए 600 रुपये दिये जाएंगे। जिला कुष्ठ रोग अधिकारी डॉ गणेश प्रसाद यादव, कंसल्टेंट डॉ भोला गुप्ता और स्वास्थ्य शिक्षा एवं सूचना अधिकारी मनोज कुमार के दिशा निर्देशन में क्षेत्र में कुष्ठ रोगी खोजने के बारे में आशा कार्यकर्ताओं को लगातार जागरूक किया जा रहा है।
नहीं बंद होने दी दवा
आशा कार्यकर्ता सुधा (40) ने बताया कि उमेश उनके पड़ोस में रहते हैं। उन्हें पहले से कुष्ठ के लक्षणों के बारे में जानकारी थी इसलिए उमेश के धब्बे देख कर उन्होंने चरगांवा भेजा था। चमड़ी के रंग से हल्के रंग का सुन्न दाग धब्बा जिसमें पसीना न आता हो, कुष्ठ रोग हो सकता है । हाथ पैर के नसों में मोटापन, सूजन, झनझनाहट, तलवों में सुनापन, पूरी क्षमता से काम न कर पाना, चेहरा, शरीर व कान पर गांठ, हाथ, पैर और उंगुली में टेढ़ापन कुष्ठ रोग के लक्षण हैं। ऐसे लक्षण दिखने पर तुरंत चिकित्सक के पास भेजने को कहा गया है । वह बताती हैं कि उमेश बीच में बाहर चले गये थे तो दो हफ्ते उनकी दवा बंद हो गयी थी। उमेश को प्रेरित कर पुनः दवा शुरू कराई गई।
मरीजों को करें प्रेरित
कुष्ठ रोग माइक्रो बैक्टीरियम लेप्रे नामक जीवाणु के कारण होता है । यह अनुवांशिक रोग नहीं है और न ही पूर्व जन्म के पापों का फल, न कोई भूत-पिशाच वटोना – टोटका । कुष्ठ रोगी से भेदभाव करने की बजाय उसे प्रेरित करें कि वह इलाज कराए । नया कुष्ठ रोगी मिलने पर आसपास के दस घरों में बचाव की दवा खिलाई जाती है । नया बाल कुष्ठ व दिव्यांग कुष्ठ रोगी मिलने पर शहरी क्षेत्र में 300 घरों में जबकि ग्रामीण क्षेत्र में पूरे गांव को बचाव की दवा खिलाने का प्रावधान है।
डॉ आशुतोष कुमार दूबे, मुख्य चिकित्सा अधिकारी