सीतापुर,क्षय उन्मूलन में अहम भूमिका निभा रहीं आशा सत्यवती वर्मा

– सामुदायिक बैठक कर टीबी के प्रति कर रहीं जागरूक
– जां और इलाज में भी पहुंचा रहीं मदद

सीतापुर। क्षय रोगियों की स्क्रीनिंग, जाँच और इलाज के साथ ही निक्षय आईडी बनाने से लेकर फॉलोअप तक में आशा कार्यकर्ताएं अहम भूमिका निभा रहीं हैं। सामुदायिक बैठक कर लोगों को जागरूक करने और टीबी को लेकर व्याप्त भ्रांतियों व भेदभाव को दूर करने का काम कर रही हैं। इस तरह वह राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम की एक मजबूत कड़ी बनकर उभरी हैं।  
मिश्रिख ब्लॉक के किशुनपुर गांव की आशा कार्यकर्ता सत्यवती वर्मा इसकी मिसाल हैं। मिश्रिख सीएचसी के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आशीष सिंह का कहना है कि आशा कार्यकर्ता सत्यवती ने अब तक 150 से अधिक लोगों की जांच कराई है और इनमें से कई टीबी मरीज के रूप में चिन्हित भी हुए हैं। वह संभावित मरीजों को लेकर सीएचसी आती हैं, यहां पर उनकी जांच  की जाती है, टीबी संक्रमित पाए जाने पर संबंधित मरीज को दवा खिलाने और उसकी देखभाल करने का काम भी सत्यवती अच्छे से करती हैं।सत्यवती के प्रयासों के अच्छे परिणाम भी आए हैं। प्रभावित परिवार के लोग भी अब अपनी जांच कराने के लिए आगे आने लगे हैं।
सत्यवती पिछले 13 सालों से नियमित तौर पर क्षेत्र में सामुदायिक बैठक कर लोगों को टीबी के लक्षणों, जांच और इलाज के बारे में बताती हैं। इससे लोग जागरूक हुए हैं  और अब खांसी, बुखार होने पर खुद ही उनसे संपर्क कर पूछते हैं कि कहीं यह टीबी के लक्षण तो नहीं हैं। संभावित लक्षण वाले लोगों को लेकर वह खुद सीएचसी जाती हैं, उनकी जांच कराती हैं। टीबी की पुष्टि होने पर वह निक्षय पोर्टल पर उनका पंजीकरण कराती हैं, दवाएं देती हैं और साप्ताहिक रूप से उनका फॉलोअप भी करती हैं। इसके अलावा सत्यवती एक डॉट्स प्रोवाइडर भी हैं, जिसके लिए उन्हें हर माह एक हजार रुपए मानदेय मिलता है। यह धनराशि आशा कार्यकर्ता के बैंक खाते में भेजी जाती है। सत्यवती का कहना है कि टीबी को लेकर आज भी लोगों में भ्रांतियां हैं। क्षेत्र में यदि किसी को टीबी है तो आस-पास के लोग तो पूरे परिवार से दूरी बना लेते हैं। क्षय रोगी के बर्तन अलग कर दिए जाते हैं, उन्हें घर का सामान छूने नहीं दिया जाता। यह सही नहीं है। दरअसल इन लोगों को पता ही  नहीं है कि केवल फेफड़ों की टीबी संक्रामक होती है। ऐसे लोगों को समझाती हूं कि यदि फेफड़ों की टीबी है तो सावधानी बरतने की जरूरत है। ऐसे मरीजों को खांसते  और छींकते समय मुंह पर रुमाल लगाना चाहिए, खुले में बलगम नहीं थूकना चाहिए। यह भी बताती हूं कि कई बार मरीज टीबी की दवा लेने नहीं आ पाते हैं तो उनके  घर दवा पहुंचाती हूं। कई ऐसे  भी मरीज हैं जो निजी चिकित्सक से अपना इलाज करा रहे हैं ऐसे मरीजों को मैं डॉट सेंटर पर मिलने वाले इलाज और सरकारी सेवाओं  व सुविधाओं की जानकारी भी देती हूं।
इनसेट —
*टीबी की पुष्टि पर मिलते हैं 500 रुपये —*
मिश्रिख सीएचसी की सीनियर ट्रीटमेंट सुपरवाइजर साधना पुष्कर का कहना है कि प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान में आशा कार्यकर्ता सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। इनके सहयोग से ही क्षेत्र के छूटे एवं छिपे हुए मरीजों तक पहुंचना आसान है। संभावित क्षय रोगी को ढूंढने, सरकारी स्वास्थ्य केंद्र पर जांच कराने और क्षय रोग की पुष्टि होने पर आशा कार्यकर्ता को 500 रुपये की प्रोत्साहन राशि प्रति मरीज दिए जाने का प्रावधान है। इसके अलावा जिले की अधिकांश आशा कार्यकर्ता आशा कार्यकर्ता होने के साथ ही सत्यवती एक डॉट्स प्रोवाइडर भी हैं। जिसके एवज में उन्हें हर माह एक हजार रुपए मानदेय मिलता है। यह धनराशि आशा कार्यकर्ता के बैंक खाते में भेजी जाती है।

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