कानपुर नगर , 01 मई 2023
धूल, धुंआ व धूम्रपान अस्थमा मरीजों का दुश्मन है। इससे उन्हें बच कर रहना चाहिए। खास तौर पर बदलते मौसम में तो अस्थमा मरीजों को और भी सतर्कता बरतनी चाहिए। जरा सी भी लापरवाही उनकी परेशानी को बढ़ा सकती है। अस्थमा की बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर वर्ष मई माह के पहले मंगलवार को ‘विश्व अस्थमा दिवस’ मनाया जाता है। हर वर्ष एक नई थीम के साथ इसे मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम ’’अस्थमा केयर फॉर ऑल’’ है।
ग्लोबल बर्डन ऑफ अस्थमा रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग तीन करोड़ लोग दमा से पीड़ित हैं, जबकि उत्तर प्रदेश में यह संख्या 50 लाख से अधिक है। दो तिहाई से अधिक लोगों में दमा बचपन से ही शुरू हो जाता है। इसमें बच्चों को खाँसी होना, सांस फूलना, सीने में भारीपन, छींक आना व नाक बहना तथा बच्चे का सही विकास न हो पाना जैसे लक्षण होते हैं।
मां कांशीराम जिला संयुक्त चिकित्सालय एवं ट्रामा सेण्टर सीनियर चेस्ट फिजिशियन डॉ. ओपी राय बताते हैं कि अस्थमा बीमारी को आम बोलचाल की भाषा में दमा भी कहा जाता है। वह बताते हैं कि अस्थमा होने के कई कारण है यह अनुवांशिक हो सकती है, वातावरण के प्रभाव का भी असर हो सकती है या दोनों । इस बीमारी में सांस की नलियों में अलग-अलग कारणों से सूजन आ जाती है। इससे रोगी को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। श्वास नलिकाओं की भीतरी दीवार में लाली और सूजन भी हो जाती है और उनमें बलगम बनने लगता है। इससे मरीज को सांस लेने में दिक्कत होती है और उसका दम फूलने लगता है। वह बताते हैं कि उनकी हर रोज होने वाली सौ-डेढ सौ की ओपीडी में 30 प्रतिशत मरीज अस्थमा और सीओपीडी के आते हैं।
यह लक्षण तो हो जायें सावधान- डा. राय बताते है कि दो तिहाई से अधिक लोगों में अस्थमा के लक्षण बचपन से ही दिखना शुरू हो जाते हैं। इसमें बच्चों को खाँसी होना, सांस फूलना, सीने में भारीपन, छींक आना व नाक बहना, उनका सही विकास न हो पाना जैसे लक्षण शामिल है। इसके अलावा खाँसी रात में बढ़ जाने खांसी, सांस लेने में दिक्कत, छाती में कसाव, जकड़न, घरघटाहट जैसी आवाज आना, गले से सीटी जैसी आवाज आना आदि भी अस्थमा के लक्षण हो सकते हैं। इसके अलावा कुछ लोगों में अस्थमा के लक्षण युवा अवस्था या फिर अधिक उम्र में दिखते है। अस्थमा के लक्षण दिखते ही मरीज को तत्काल अपना उपचार शुरू करा देना चाहिए।
अस्थमा का उपचार-
डॉ. राय बताते हैं कि अस्थमा के इलाज में इन्हेलर चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है क्योंकि इसमें दवा की मात्रा का कम इस्तेमाल होता है। इसका असर सीधा एवं शीघ्र होता है एवं दवा का कुप्रभाव बहुत ही कम होता है। इसके इलाज के लिए दो प्रमुख तरीके के इन्हेलर इस्तेमाल किये जाते हैं। पहला रिलीवर इन्हेलर है जो तेजी से काम करके श्वांस की नलिकाओं की मांसपेशियों का तनाव ढीला करता है। इससे सिकुड़ी हुई सांस की नलियां तुरन्त खुल जाती हैं। इसको सांस फूलने पर लेना होता है। दूसरा कंट्रोलर इन्हेलर जो श्वास नलियों में उत्तेजना और सूजन घटाकर उनको अधिक संवेदनशील बनने से रोकता हैं और गम्भीर दौरे का खतरा कम करता हैं। इसके साथ ही मरीज को कुछ जरूरी दवाएं भी दी जाती है, जिससे मरीज को काफी आराम मिलता है।