कृषक धर्मेन्द्र बने जनपद में गौ आधारित प्राकृतिक कृषि के अग्रदूत’’गौ आधारित प्राकृतिक खेती के फसल उत्पाद स्वास्थ्य के लिए हैं अहानिकारकः- जिलाधिकारी

हरदोई। केन्द्र एवं राज्य सरकार की मंशानुरूप जनपद हरदोई में भी गौ आधारित प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। जिलाधिकारी मंगला प्रसाद सिंह भी इस प्रकार की खेती को निरंतर प्रोत्साहित करते रहते हैं। जिलाधिकारी कहते हैं कि आम जनमानस धीरे-धीरे अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो रहा है। गौ आधारित प्राकृतिक खेती के प्रति जनपद के किसानों का रुझान लगातार बढ़ रहा है।

जनपद में कई जागरूक किसान गौ आधारित प्राकृतिक खेती के मामले में अन्य किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हैं। ऐसे ही एक किसान हैं भरखनी विकास खण्ड के सिलवारी ग्राम के धर्मेन्द्र सिंह। उनका कहना है कि गौ आधारित खेती से उनकी आय बढ़ी है तथा लागत कम हुई है। वे अपने खेतों में रासायनिक खादों का इस्तेमाल नही करते हैं। वे गोबर की खाद व गोमूत्र आदि का इस्तेमाल अपने खेतों में कर रहे हैं। उनका मानना है कि जैविक खेती से खेत की मृदा की उर्वरता बनी रहती है। जैविक खेती के लिए आवश्यक जानकारी कृषि विभाग से प्राप्त होती रहती है। किसान धर्मेन्द्र लगभग 2 हेक्टेयर भूमि में गौ आधारित प्राकृतिक खेती का कार्य कर रहे हैं। वे मुख्यतः गेहूँ, काला गेहूँ, मूंगफली, बाजरा, ज्वार, तिल, उरद, सावां, सरसों, मेथी व धनिया आदि की खेती करते हैं।

अब तक उनसे प्रेरित होकर गाँव के 5 व भरखनी विकास खण्ड के 30 किसानों ने गौ आधारित खेती प्रारम्भ कर दी है। ये सभी किसान 1 से लेकर 2 एकड़ तक के क्षेत्रफल में इस प्रकार की खेती कर रहे हैं। उनके पास वर्तमान में कुल 6 गोवंश हैं। गौ आधारित प्राकृतिक खेती में धर्मेन्द्र गोबर व गोमूत्र का अच्छा इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वे गोमूत्र से जीवामृत बनाते हैं। उन्होंने जीवामृत के बारे में बताते हुए कहा कि वे जीवामृत बनाने के लिए गोबर, गोमूत्र, बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी, गुड़, बेसन (विकल्प आंटे की भूसी) डालते हैं।

गुड़ के विकल्प के रूप में सड़े हुए मौसमी फल इस्तेमाल किये जा सकते हैं। कीटनाशक के रूप में भी धर्मेन्द्र किसी रसायन का प्रयोग नहीं करते हैं। छोटे कीटों को मारने के लिए वे सुभाष पालेकर पद्धति के अनुसार स्वनिर्मित दशपर्णी अर्क व बड़े कीटो को मारने के लिए ब्रम्हास्त्र का प्रयोग करते हैं। उन्होंने बताया कि दशपर्णी अर्क को बनाने में जल, गोमूत्र, गोबर, 10 पेड़-पौधों के पत्ते जिन्हें जानवर न खाते हों, का इस्तेमाल करते हैं। ब्रम्हास्त्र को बनाने में गोमूत्र, करंज के पत्ते, धतूरे के पत्ते, पीले गुड़हल के पत्ते, लहसुन, हरी लाल मिर्च, हींग व तम्बाकू पाउडर का प्रयोग किया जाता है। धर्मेन्द्र के फसल उत्पादों की सराहना जनपद के जिलाधिकारी मंगला प्रसाद सिंह भी कर चुके हैं।

वे लगातार धर्मेन्द्र की भाँति अन्य किसानों को भी जैविक खेती को अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं। उनका कहना है कि जैविक खेती के फसल उत्पाद स्वास्थ्य के लिए अहानिकारक होते हैं। उपनिदेशक कृषि डॉ नंदकिशोर किसानों को प्रेरित करने के लिए गोष्ठियों का आयोजन करते रहते हैं। अभी हाल में कृषक सभागार में आयोजित एक गोष्ठी के दौरान कृषक धर्मेन्द्र सिंह को गौ आधारित प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती प्रेमावती द्वारा सम्मानित किया गया।

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