नोटिफिकेशन से मरीजों को मिली 2.29 करोड़ की सहायता व अन्य सुविधाएं
निजी चिकित्सकों की सहमति से सरकारी अस्पताल से भी चल सकती है दवा
गोरखपुर, 26 दिसम्बर 2022
क्षय रोग उन्मूलन में निजी चिकित्सक सक्रिय भागीदारी निभाने को तत्पर हैं । मरीजों के इलाज में उनके मददगार बनने से जहाँरोगियोंका नोटिफिकेशन बढ़ा है वहीँ सरकारी सुविधाओं का लाभ पहुंचाने में भी आसानी हुई है | निक्षय पोषण योजना के तहत इलाज के दौरान हर माह 500 रुपये मरीजों के बैंक खाते में भेजे जा रहे हैं | मरीजों को सीबीनॉट जांच, एचआईवी, शुगर आदि जांचों की भी सुविधा मिली है । निजी क्षेत्र के प्रयासों से टीबीमरीजों को अब तक 2.29 करोड़ की सहायता निक्षय पोषण योजना के तहत दी गयी । प्रावधान यह भी है कि अगर निजी चिकित्सक सहमति दें तो सारी दवाएं सरकारी अस्पताल से भी पाने का मरीज का अधिकार है ।
महानगर के राजघाट क्षेत्र के रहने वाले 22 वर्षीय राहुल (बदला हुआ नाम) की 42 वर्षीया मां को अगस्त 2021 में टीबी हो गयी । परिवार के आय का साधन एक छोटी सी दुकान है और घर में तीन सदस्य हैं । परिवार ने उनका इलाज निजी चिकित्सक से करवाया । राहुल बताते हैं कि चिकित्सक ने उन्हें जिला क्षय रोग केंद्र भेज कर मां का विवरण जमा करवा दिया था। मां के फेफड़े की टीबी का आठ माह इलाज चला और इस दौरान निजी डॉक्टर के नोटिफिकेशन से फायदा यह हुआ कि मां के खाते में 4000 रुपये पोषण के लिए भी मिले । मां की सभी जांच भी सरकारी अस्पताल में ही हुईं , फिर भी निजी अस्पताल में इलाज करवाने में हजारों रुपये खर्च हो गये। उनकी मां को दिसम्बर 2022 में दोबारा टीबी की दिक्कत हो गयी। मां का वजन काफी कम हो चुका है । अब पैसे नहीं बचे हैं कि निजी चिकित्सक से इलाज करवायें । ऐसे में चिकित्सक ने बताया कि वह चाहें तो सरकारी अस्पताल में इलाज करवा सकते हैं । इसके बाद जिला क्षय रोग केंद्र से उनकी मां की दवा शुरू हो गयी है ।
वरिष्ठ उपचार पर्यवेक्षक (एसटीएस) गोबिंद का कहना है कि अगर टीबी मरीज को दोबारा बीमारी होती है तब भी निक्षय पोषण योजना का पुनः लाभ मिलता है । अक्सर देखा जा रहा है जहां कुपोषण का स्तर ज्यादा है और स्वच्छ वातावरण नहीं है वहां टीबी की पुनरावृत्ति हो जाती है। कम आय वर्ग के मरीज एक बार तो किसी तरह निजी चिकित्सक का खर्च वहन कर लेते हैं लेकिन जब बिल्कुल असमर्थ हो जाते हैं तो चिकित्सक की सहमति से सरकारी अस्पताल में उनको उपचार की सभी सुविधाएं दी जाती हैं और मरीज स्वस्थ भी होते हैं।
टीबी मरीजों का नोटिफिकेशन कर उन्हें सरकारी सेवा का लाभ दिलवा रहे निजी चिकित्सक डॉ नदीम अर्शद बताते हैं कि टीबी के वयस्क मरीज तो ज्यादातर वंचित वर्ग से आते हैं लेकिन बाल मरीज हर आयवर्ग में मिल रहे हैं। जिन मरीजों की आर्थिक स्थिति बिल्कुल ठीक नहीं होती है उन्हें पूरी तरह से सरकारी सेवा से जोड़ा जाता है। जो निजी अस्पताल से ही इलाज करवाना चाहते हैं उन्हें जांच की सरकारी सुविधा की जानकारी दी जाती है और बताया जाता है कि वहां जांच करवा कर भी उनसे इलाज करवा सकते हैं। सरकारी दवा लेते हुए भी उनका परामर्श ले सकते हैं ।
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ गणेश प्रसाद यादव का कहना है कि निजी चिकित्सकों द्वारा नोटिफिकेशन की व्यवस्था होने से मरीज का तो फायदा होता ही है, बीमारी का प्रसार रोकने में भी मदद मिलती है। जब निजी चिकित्सक नोटिफिकेशन कर देते हैं तो सम्बन्धित मरीज के परिवार की भी कांटैक्ट ट्रेसिंग की जाती है। कई बार कांटैक्ट ट्रेसिंग में परिवार के अन्य सदस्य भी मरीज निकल जाते हैं और उनका भी उपचार शुरू हो जाता है। अगर कोई मरीज नहीं भी निकलते हैं तो सभी को टीबी से बचाव की दवा खिलाई जाती है । निजी क्षेत्र भी काफी सक्रिय हुआ है और साल दर सार नोटिफिकेशन बढ़ रहा है । नोटिफेकेशन के लिए निजी चिकित्सक को भी प्रति नया मरीज 500 रुपये दिया जाता है । अगर वह टीबी मरीज दवा के बाद ठीक हो जाता है तो निजी चिकित्सक को 500 रुपये और भी दिये जाते हैं। इस योजना के तहत निजी चिकित्सकों को 35.84 लाख रुपये दिये जा चुके हैं। यह करना सभी निजी चिकित्सकों का कर्तव्य भी है और टीबी का नोटिफिकेशन कानूनन भी अनिवार्य है।
बढ़ाई जा रही भागीदारी
जिला पीपीएम समन्वयक अभय नारायण मिश्रा बताते हैं कि निजी चिकित्सकों की भागीदारी बढ़ाने के लिए जिला स्तरीय टीम और ब्लॉक की टीम भी निजी चिकित्सकों से सम्पर्क करती है। उन्हें आश्वस्त किया जाता है कि मरीज का इलाज अपने यहां करने के साथ उसे सरकारी सुविधा का लाभ दिलवा सकते हैं।
साल दर साल प्राइवेट नोटिफिकेशन से मिली सहायता
वर्ष मरीज को मिली आर्थिक सहायता
2018 12000
2019 13.25 लाख
2020 83.05 लाख
2021 58.13 लाख
2022 74.47 लाख (नवम्बर अंत तक)
निजी चिकित्सा क्षेत्र से नोटिफिकेशन
वर्ष नोटिफाइड मरीज
2018 779
2019 4499
2020 3960
2021 4747
2022 4425