हरदोई,स्वच्छ भारत मिशन नगरीय 2.0 के अंतर्गत स्वच्छ टेक्नोलॉजी चैलेंज प्रभावी ढंग से लागू:राम रतन अंबेश

कूड़े कचरे की समस्या से निपटने के लिए लोगों को जागरूक किया

हरदोई।नगर पालिका परिषद, शाहाबाद के अधिशाषी अधिकारी राम रतन अंबेश ने स्वच्छ टेक्नोलॉजी चैलेंज को प्रभावी ढंग से लागू करते हुए नेहरू म्युनिसिपल कन्या इण्टर कालेज में जागरूकता शिविर का आयोजन कर कूड़ा कचरा की समस्या के निपटान पर प्रकाश डाला।
कहा कि नगर में कचरा प्रबंधन एक चुनौती है।

जगह-जगह कूड़े के ढेर हटाए जा रहे हैं। सुखा एवं गीला कूड़ा कचरा पर्यावरण के लिए कितनी बड़ी चुनौती है और इससे निपटने के लिए पालिका को क्या करना चाहिए?
जवाब में छात्राओं एवं शिक्षिकाओं ने कहा कि कूड़ा फेंकने की जगह औपचारिक या अनौपचारिक हो सकती है। अपशिष्ट प्रबंधन के संबंध में स्थानीय प्रशासन के पास समावेशी दृष्टिकोण का अभाव है।जो निकाय द्वारा एक स्थायी अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली स्थापित करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

बताया कि बाहर से आने वाले यात्री अपनी यात्रा के दौरान बस स्टैण्ड और स्टेशन के आसपास काफी कूड़ा फैलाते हैं। इसलिए पालिका प्रशासन को मुख्य स्थानों पर जागरूकता फैलाने के साथ ही कूड़ा फेंकने वालों पर भारी जुर्माना लगाना चाहिए। इस पहल में उचित प्रबंधन और वैज्ञानिक निपटान के लिए हॉटस्पॉट से संचित कचरे का संग्रह भी शामिल होना चाहिए।

अधिशासी अधिकारी ने प्रश्न किया कि आपके अनुसार वर्तमान समय में कचरा निस्तारण की आधुनिक तकनीकी की उपलब्धता होने के बावजूद ऐसी क्या कमी है कि कचरे का प्रबंधन ठीक तरह से नहीं हो पा रहा है।

जवाब में छात्राओं ने कहा कि पालिका प्रशासन को कचरा प्रबंधन को लेकर मूल दृष्टिकोण ‘सेवा’ उन्मुख अपनाना चाहिए।‘प्रबंधन’ शब्द का अर्थ है विभिन्न अपशिष्ट अंशों का प्रसंस्करण, उपचार, पुनर्प्राप्ति और पुनर्चक्रण। स्रोत स्थल पर जो कचरा इकट्ठा किया जाता है, वह पर्याप्त पृथक्करण के अभाव में, एक ‘मिश्रित’ कचरा होता है। आमतौर पर इस तरह के अंश धूल, नाली की गाद आदि होते हैं। इसलिए अपशिष्ट प्रबंधन ऐसी कोई चुनौती नहीं है, जिसे प्रौद्योगिकी के होने या न होने से जोड़ा जा सकता है।

स्वच्छ भारत मिशन 2.0 की राज्य मिशन निदेशक नेहा शर्मा स्थानीय निकायों को यह सुनिश्चित करने का आदेश देती हैं कि वे 2026 के अंत तक कूड़े के लैंडफिल पर पहुंचने से पहले उसे 80 प्रतिशत तक प्रसंस्करित करें।
छात्राओं से ई ओ ने प्रश्न किया कि कूड़े के प्रबंधन में किस तरह की समस्याएं हैं?

जवाब में छात्राओं और शिक्षिकाओं ने बताया कि पालिका जैसी संस्थाओं के पास व्यवस्थित अपशिष्ट प्रबंधन की व्यवस्था नहीं है। साथ ही, केंद्रीकृत अपशिष्ट प्रसंस्करण और उपचार सुविधाओं के लिए स्थलाकृतिक कारणों से घर-घर जाकर कूड़ा जमा करना चुनौतीपूर्ण है।हमारे नगर के लिए सबसे अच्छा तरीका ‘विकेंद्रीकृत प्रणालियों’ को अपनाना और लागू करना है, ताकि उत्पन्न जैव-निम्नीकरणीय कचरे को सूक्ष्म खाद सुविधाओं में उपचारित किया जा सके और गैर जैव-निम्नीकरणीय कचरे को द्वितीय पृथक्करण के लिए सप्ताह में दो बार इकट्ठा किया जा सके। राज्य या जिला प्रशासन कचरे की मात्रा को देखते हुए नगर स्तर पर एक केंद्र बना सकते हैं, ताकि बड़ी मात्रा में प्रसंस्करण के लिए भेजे जाने से पहले इसमें बड़ी तादाद में कूड़ा जमा हो सके।
श्री अंबेश ने प्रश्न किया कि प्रतिदिन बढ़ती जनसंख्या के साथ कचरे की मात्रा भी बढ़ रही है। इसे नियंत्रित करने के लिए स्थानीय व प्रशासनिक स्तर पर क्या-क्या कार्य किए जा सकते हैं?

जवाब में कहा गया कि नगर में हर रोज बड़ी मात्रा में कचरा पैदा हो रहा है और इसकी रफ्तार तेजी से बढ़ रही है। वर्तमान समय में प्रति व्यक्ति हिसाब से हर दिन 450 ग्राम कूड़ा पैदा होता है, जो कि अगले 15-20 साल में बढ़कर हर दिन 800 ग्राम प्रति व्यक्ति होने का अनुमान है। इसके लिए सिर्फ नीतिगत स्तर पर सुधार और स्थानीय प्रशासन के रवैये में बदलाव की जरूरत है।

अनौपचारिक कचरा बीनने वालों और निजी कंपनियों के लिए समान अवसर मुहैया कराने के साथ कचरा प्रबंधन को ‘सेवा’ से ‘व्यापार मॉडल’ में बदलने के लिए टिकाऊ अभ्यास पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। विशेष रूप से कस्बे के लिए हमें जल्द से जल्द विकेंद्रीकृत प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए व्यापक नीति की भी आवश्यकता है।
अधिशासी अधिकारी ने सवाल किया कि नगरीय क्षेत्र में कचरा निपटान की समस्या के मुख्य कारण एवं कचरा प्रबंधन के उपाय क्या हो सकते हैं?
जवाब मिला कि नगर क्षेत्र में कचरा निपटान से जुड़ी समस्यायों में बिना किसी उपचार के कचरे को यहां-वहां अंधाधुंध फेंकना शामिल है। जो अपरिवर्तनीय स्वास्थ्य और पर्यावरणीय चुनौतियों का कारण बन रहा है। नतीजतन, नगर में उत्पन्न कचरे का एक महत्वपूर्ण अंश अनुपयोगी हो जाता है और कचरा स्थलों पर समाप्त हो जाता है। नगरपालिका के ठोस कचरे के अपघटन को मीथेन का तीसरा प्रमुख मानवजनित स्रोत माना जाता है, और यह कुल मानवजनित मीथेन उत्सर्जन में लगभग 11 प्रतिशत योगदान देता है।
कचरे की समस्या को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने और ग्रीनहाउस उत्सर्जन को कम करने के उपायों में स्रोत पृथक्करण एक महत्वपूर्ण कारक है जिसे सभी हितधारकों और सुशासन की भागीदारी से प्राप्त किया जा सकता है।
इस अवसर पर कर निरीक्षक अनस खां,सफाई निरीक्षक दीपक कुमार,लेखाकार असद खां,प्रधानाचार्या नुरुल हुमा, विषय विशेषज्ञ अम्बरीष कुमार सक्सेना,शिक्षिका भैरवी अग्निहोत्री,शशि शुक्ला,नायब जहां, पुष्पांजली श्रीवास्तव,वंदना दीक्षित,उषा देवी,वर्तिका शुक्ला,वैशाली यादव,आयशा परवीन एवं लिपिक जिया खान सहित बड़ी संख्या में छात्राएं मौजूद रहीं।

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